Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे नन्वेवमादित्योदयादिवशादेवाकाश प्रदेशपंक्तिष्विव पृथिव्यादिष्वपि पूर्वापरादिप्रत्यय सिद्धेराकाशप्रदेशश्रेणिकल्पनाप्यनथिका भवत्विति चेत्, न; 'पूर्वस्यां दिशि पृथिव्यादयः' इत्याद्याधाराधेयव्यवहारोपलम्भात् पृथिव्यायधिकरणभूतायास्तत्प्रदेशपंक्तेः परिकल्पनस्य सार्थकत्वात् । प्राकाशस्य च प्रमाणान्ततः प्रसाधितत्वात् । तन्न परपरिकल्पितं दिग्द्रव्यमप्युपपद्यते ।
समाधान-तो फिर पूर्व दिशा है इत्यादि प्रत्यय भी पूर्वादि अाकाश प्रदेशों के निमित्त से होता है यह सहज सिद्ध होगा, दिशाद्रव्य को मानने का प्रयास करना व्यर्थ है।
शंका-इसतरह दिशाद्रव्य का अभाव करते हैं तो आकाश प्रदेशों की श्रेणियों की कल्पना करना भी व्यर्थ है। जिसप्रकार आप आकाश प्रदेशों की पंक्तियों में सूर्योदयादि के निमित्त से ही पूर्व पश्चिम आदि की प्रतीति होना स्वीकार करते हैं, उसप्रकार पृथिवी आदि में उसी सूर्योदय आदि के निमित्त से पूर्वादिकी प्रतीति होना संभव है ?
समाधान-ऐसी शंका नहीं करना, "पूर्व दिशा में पृथिवी है, पश्चिम दिशा में पृथिवी आदि है" इत्यादि प्रत्ययों में आधार-प्राधेय व्यवहार देखा जाता है, अतः पृथिवी आदि प्राधेयभूत पदार्थों का आधार जो आकाश प्रदेश पंक्ति है उनकी सिद्धि करना सार्थक है। आकाश द्रव्य की सिद्धि तो प्रमाणान्तर से कर चुके हैं, अर्थात् संपूर्ण द्रव्यों के अवगाहन का जो असाधारण निमित्त है वही आकाशद्रव्य है, प्राकाशद्रव्य का सद्भाव अवगाहना के निमित्त से होता है इत्यादि अनुमान प्रमाण द्वारा अमूर्त, अनेक प्रदेशों का अखंड पिंड स्वरूप आकाश सिद्ध होता है इस जगत प्रसिद्ध आकाशद्रव्य से ही दिशानों का व्यवहार होता है, अतः परवादी कल्पित दिशा नामा द्रव्य पृथक् पदार्थ सिद्ध नहीं होता है, उसको सिद्ध करने वाला कोई भी प्रमाण नहीं है, ऐसा सुनिश्चित हुआ।
|| दिशाद्रव्यवाद समाप्त ।।
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