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प्रमेयकमलमार्तण्डे
मितरेभ्यो भिद्यते दिगिति व्यवहर्त्तव्यम्, पूर्वादिप्रत्ययलिङ्गत्वात्, यत्तु न तथा न तत्पूर्वादिप्रत्ययलिंगम् यथा क्षित्यादि, तथा चेदम्, तस्मात्तथेति । न चैते प्रत्यया निनिमित्ताः; कादाचित्कत्वात् । नाप्यविशिष्टनिमित्ताः; विशिष्टप्रत्ययत्वाद्दण्डीतिप्रत्ययवत् । न चान्योन्यापेक्षमूर्तद्रव्य निमित्ताः; परस्पराश्रयत्वेनोभयप्रत्ययाभावानुषङ्गात् । ततोऽन्य निमित्तोत्पाद्यत्वासम्भवादेते दिश एवानुमापका: । प्रयोग:
जिससे हो अथवा यह इससे दक्षिण में है, पश्चिम में है, उत्तर में है, या पूर्व तथा दक्षिण की बीच की दिशा आग्नेय में है, वायव्य में है, नैऋत्य में है, ईशान में है, अथवा यह ऊपर है, यह नीचे है, इस प्रकार दस प्रकार के प्रतिभास जिसके द्वारा हुया करते हैं वह दिशाद्रव्य है। तथा वैशेषिक सूत्र में भी कहा है कि "यहां से यह है" इस प्रकार का ज्ञान जिस हेतु से होता है वही दिशा की सिद्धि करने वाला हेतु है। इसतरह आगम से प्रसिद्ध होने पर वह दिशाद्रव्य अनुमान से भी सिद्ध हो जाता है, अब हम वही अनुमान प्रमाण उपस्थित करते हैं -दिशा नामा द्रव्य अन्य द्रव्यों से भिन्न है [पक्ष] क्योंकि "दिशा इस नाम से व्यवहार में प्राने योग्य होकर पूर्व, पश्चिम इत्यादि प्रतिभासों का कारण है [ हेतु ] जो इसतरह के व्यवहार का कारण नहीं होता वह पूर्वादि प्रतिभास का कारण नहीं होता, जैसे पृथ्वी आदि द्रव्य दिशा नाम से व्यवहृत नहीं होते अतः पूर्वादि प्रतिभास का कारण नहीं है, [ दृष्टांत ] दिशा इस नाम से व्यवहार में यह द्रव्य आता है इसलिये पूर्वादिप्रत्यय का कारण है । यह पूर्वादिका प्रतिभास बिना निमित्त के हो नहीं सकता है, यदि बिना निमित्त के होता तो हमेशा होता किंतु यह तो कभी कदाचित् होता है। इन पूर्वादि प्रत्ययों का साधारण कारण
आकाशादि हो सो भी बात नहीं है, क्योंकि ये प्रत्यय विशिष्ट हैं, जैसे कि दण्डी "यह दण्डावाला है" इत्यादि प्रत्यय विशिष्ट कारण से होते हैं। पूर्वादि प्रत्ययों का कारण आपस में एक दूसरे की अपेक्षा से मूत्तिक द्रव्य ही हुआ करते हैं, ऐसा कोई कहे तो वह भी ठीक नहीं, इसतरह से परस्पराश्रय दोष पायेगा और उभयप्रत्ययों का ही अभाव होगा, अर्थात् किसी एक वस्तु के पूर्वत्व सिद्ध होने पर उसकी अपेक्षा से दूसरी वस्तु का पश्चिमत्व सिद्ध होगा, और जब वह पश्चिम की सिद्धि होगी तब पहली वस्तु पूर्व को सिद्ध हो सकेगी, ऐसे दोनों के प्रत्ययों का अभाव होवेगा । इसप्रकार इन पूर्वादि प्रत्ययों का अन्य कारण दिखायी नहीं देता अत: वे प्रत्यय दिशा के अनुमापक बनते हैं, दिशाद्रव्य को ही सिद्ध कर देते हैं । वही अनुमान प्रस्तुत करते हैं.---यह जो
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