Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
काल द्रव्यवाद: ..
परत्वमन्यस्य चाल्पीयांसीत्यपरत्वम् । नन्वेवं कथं योगपद्यादिप्रत्ययप्रादुर्भावः एकस्मिन्नेवादित्यपरिवर्त्तने सर्वेषामुत्पादात् ? तथाव्यपदेशाभावाच्च ; 'युगपत्कालः' इति हि व्यपदेशो न पुनः 'युगपदादित्यपरिवर्तनम्' इति ।
आज तक सूर्य के गमनागमन रूप परिवर्तन बहुत हुए हों उस पुरुष में “परोऽयं" यह बड़ा है ऐसा प्रत्यय होता है, और जिस पुरुष के वे सूर्य परावर्तन अल्प हुए हैं उस पुरुष में "अपरोऽयं" यह छोटा है ऐसा प्रत्यय होता है ?
समाधान – यदि ऐसी बात है तो एक ही सूर्य परावर्तन में सभी का उत्पाद होने से अयुगपत आदि प्रत्यय किस प्रकार हो सकेंगे ? तथा उसप्रकार का संज्ञा व्यवहार भी नहीं होता, युगपत् कालः ऐसी संज्ञा होती न कि युगपत् प्रादित्य परिवर्तनं ऐसी संज्ञा होती है...?
विशेषार्थ-परापर प्रत्यय, युगपत् अयुगपत् होना इत्यादि प्रत्यय काल-द्रव्य को नहीं मानने पर सिद्ध नहीं होते हैं। वैशेषिक काल द्रव्य को मानकर भी उसको एक रूप, नित्य मानता है उस पक्ष का खण्डन करने के अनन्तर जो मीमांसकादि परवादी काल द्रव्य का अस्तित्व ही नहीं मानते हैं उनका निराकरण करते हुए जैनाचार्य कहते है कि यह पर है इत्यादि प्रतिभास दिशा, गुण या जाति विषयक नहीं होता है किन्तु काल विषयक होता है, कोई पुरुष निकट में बैठा है वह चांडाल है, किंतु वृद्ध है-उसमें “परः अयं" ऐसा व्यवहार होता है वह दिशा विषयक होता तो निकट में बैठे पुरुष में “परोयं" ऐसा व्यवहार नहीं होता, अपितु "अपरोयं" ऐसा व्यवहार होता । तथा जाति विषयक होता तो होन जातीय होने से "अपर है" ऐसा कहते, एवं गुण विषयक होता तो वह चांडाल गुण हीन होने के कारण "अपर है" ऐसा व्यवहार होता। इससे निश्चय होता है कि निकट बैठे हुए गुण होन वृद्ध चांडाल में "परोयं-बड़ा है" इस तरह का प्रतिभास होने का कारण काल द्रव्य ही है। इस पर मीमांसक ने शंका उठाई कि-परापर प्रत्यय [ छोटा बड़ा मनुष्य या दीर्घायु अल्पायु मनुष्य ] सूर्य के गमन द्वारा हो जाया करता है, जिस किसी मनुष्यादि के जन्म से लेकर अभी तक बहुत से सूर्य गमन निमित्तक दिन रात हो चुके हैं उस मनुष्य को परोयं-यह बड़ा है ऐसा कह देते हैं अथवा उसमें वैसा प्रतिभास या ज्ञान होता है, तथा जिस मनुष्य के जन्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org