Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
___ यदि चास्य निरवयत्रकद्रव्यरूपताभ्युपगम्यते कथं तह्यतीतादिकालव्यवहार: ? स हि किमतीताद्यर्थक्रियासम्बन्धात्, स्वतो वा स्यात् ? अतीताद्यर्थक्रियासम्बन्धाच्चेत् ; कुतस्तासामतीतादित्वम् ? अपरातीताद्यर्थक्रियासम्बन्धाच्चेत्; अनवस्था। अतीतादिकालसम्बन्धाच्चेत्; अन्योन्याश्रयः । स्वतस्तस्यातीतादिरूपता चायुक्ता, निरंशत्वभेदरूपत्वयोविरोधात् ।
___ योगपद्यादिप्रत्ययाभावश्चैववादिन: स्यात् ; तथाहि-यत्कार्यजातमेकस्मिन्काले कृतं तद्युगपस्कृतमित्युच्यते । कालैकत्वे चाखिलकार्याणामेककालोत्पाद्यत्वेनैकदेवोत्पत्तिप्रसंगान्न किञ्चिदयुगपस्कृतं स्यात् ।
वैशेषिक कालद्रव्य को अवयव रहित सर्वथा एक रूप मानते हैं सो ऐसे एकत्वरूप काल द्रव्य में यह अतीतकाल है, यह वर्तमानकाल है, इत्यादि व्यवहार किस प्रकार हो सकेगा ? प्रतीत आदि अर्थक्रिया के सम्बन्ध से अतीतकाल इत्यादि व्यवहार होता है अथवा स्वतः ही यह व्यवहार हो जाता है ? अतीतादि अर्थक्रिया के सम्बन्ध से अतीतादि व्यवहार होता है, ऐसा प्रथम पक्ष लेवे तो अतीत आदि अर्थ क्रियानों में अतीत, अनागत इत्यादि संज्ञा किस निमित्त से आयी, अपर अतीतादि अर्थक्रिया सम्बन्ध से आयी ऐसा कहो तो अनवस्था दोष आता है ।
__शंका-अतीतादिकाल के सम्बन्ध से अतीतादि अर्थक्रिया का व्यवहार हो जायेगा ?
समाधान-तो फिर अन्योन्याश्रय नामा दोष उपस्थित होगा, कैसे सो ही बताते हैं-क्रियानों का अतीतादिपना सिद्ध होने पर तो उनके सम्बन्ध से काल का अतीतादिपना सिद्ध होवेगा, और उसके सिद्ध होने पर क्रियाओं का प्रतीतत्व सिद्ध होगा, इसतरह दोनों प्रसिद्ध की कोटि में आ जायेगे। कालद्रव्य में अतीतकाल, अनागत काल इत्यादि भेद स्वतः ही होता है ऐसा दूसरा पक्ष कहो तो ठीक नहीं है, निरंश-अवयव रहित ऐसे कालद्रव्य में प्रतीतपना, वर्तमानपना इत्यादि भेद मूलक धर्म होना असंभव है । निरंशत्व और भेदरूपत्व इनमें विरोध है ।
कालद्रव्य को निरंश मानने से यौगपद्य आदि प्रत्यय होना भी सिद्ध नहीं होगा, इसी को आगे स्पष्ट करते हैं—जो कार्यसमूह होता है वह यदि एक ही काल में किया हुअा होता है तो उसको "एक साथ किया ऐसा कहते हैं, अथवा एक ही काल
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