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प्राकाशद्रव्यविचारः
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ननु निखिलार्थानां यथाकाशेवगाहः तथाकाशस्याप्यन्यस्मिन्नधिकरणेऽवगाहेन भवितव्यमित्यनवस्था, तस्य स्वरूपेवगाहे सर्वार्थानां स्वात्मन्येवावगाहप्रसङ्गात्कथमाकाशस्यात: प्रसिद्धिः ? इत्यप्यपेशलम् ; आकाशस्य व्यापित्वेन स्वावगाहित्वोपपत्तितोऽनवस्थाऽसम्भवात्, अन्येषामव्यापित्वेन स्वावगाहित्वायोगाच्च । न हि किञ्चिदल्पपरिमाणं वस्तु स्वाधिकरणं दृष्टम् ; अश्वादेर्जलाद्य धिकरणोपलब्धेः । कथमेवं दिक्कालात्मनामाकाशेवगाहो व्यापित्वात् ; इत्यप्यसाम्प्रतम् ; हेतोरसिद्ध। तदसिद्धिश्च दिग्द्रव्यस्यासत्त्वात्, कालात्मनोश्चासर्वगतद्रव्यत्वेना ने समर्थनात्प्रसिद्ध ति । ननु तथाप्य
अवगाह नहीं हो सकता और न ये किसी को अवगाह दे सकते हैं, अतः अखिल द्रव्यों को अवगाह देना अाकाश का ही कार्य सिद्ध होता है ।
___ शंका-सम्पूर्ण द्रव्यों का अवगाह आकाश में होता है किन्तु आकाश का अवगाह किस में होगा उसके लिए अन्य कोई आधार चाहिए । अन्य तीसरा भी किसी अन्य के अधिकरण में रहेगा, इस तरह तो अनवस्था होती है और यदि अाकाश स्वयं में अवगाहित है तो सभी पदार्थ भी स्वस्वरूप में अवगाहित रह सकते हैं, अतः अवगाह रूप हेतु द्वारा प्राकाश को सिद्धि करना किस प्रकार शक्य है ?
समाधान- यह बात अयुक्त है, आकाश स्वयं का आधार [ अवगाह ] देने वाला इसलिये सिद्ध होता है कि वह सर्व व्यापी है, इसी कारण से अनवस्था दोष भी नहीं आता है । प्रकाश आदि अन्य पदार्थ इस तरह सर्व व्यापक नहीं हैं अतः वे स्वयं को अवगाह नहीं दे सकते । ऐसा नहीं देखा गया है कि अल्प परिमाण वाली वस्तु स्वयं का प्राधार होती हो, अश्वादि पदार्थ अल्प परिमाण वाले होते हैं तो वे अपने से बृहत् परिमाण वाले जलाशय आदि के अधिकरण में रहते हैं।
शंका-अल्प परिमाण वाले अन्य के आधार में रहते हैं ऐसा कहेंगे तो दिशा काल, आत्मा, इन पदार्थों का आकाश में अवगाह होना किस प्रकार सिद्ध होगा ? क्योंकि ये पदार्थ स्वयं व्यापक हैं।
समाधान--यह बात समीचीन नहीं है, हेतु प्रसिद्ध है, अर्थात् दिशा आदि व्यापक होने से आकाश में नहीं रह सकते, ऐसा कहना प्रसिद्ध है, दिशा आदि की व्यापकता इसलिये प्रसिद्ध है कि दिशा नामका कोई द्रव्य नहीं है, तथा काल और आत्मा सर्वगत नहीं है, ये द्रव्य असर्वगत हैं, इस विषय का आगे समर्थन करने वाले हैं।
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