Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्राकाश द्रव्य विचार!
आपका कहना है कि शब्द में स्वयं संख्या नहीं है, संख्यादिका उसमें उपचार मात्र किया जाता है। किन्तु यह कहना असत् है शब्द में संख्या का उपचार किया जाता है तो किसकी संख्या का उपचार करे ? पदार्थ की संख्या का उपचार होना अशक्य है, क्योंकि पदार्थ की संख्या अनेक हैं और उनका वाचक शब्द एक है ऐसा देखा जाता है, जैसे गो, राजा, किरण, पृथ्वी आदि पदार्थ अनेक हैं और उनका वाचक एक ही गौ शब्द है । दूसरी बात यह है कि शब्द को आकाश का गुण माना जाय तो वह हमारे कर्ण गोचर नहीं हो सकता, क्योंकि आकाश अतीन्द्रिय होने से उसका गुण भी अतीन्द्रिय होवेगा।
तथा शब्द को आकाश का गुणरूप माने तो उसका नाश नहीं हो सकेगा, किन्तु प्रतिकूल वायु आदि से शब्द नष्ट होते हुए देखे जाते हैं । इसप्रकार शब्द आकाश का गुण नहीं है यह निश्चित होता है। शब्द तो पुद्गल द्रव्य स्वरूप है। इसप्रकार शब्द लिंग द्वारा आकाशद्रव्य की सिद्धि करना खंडित होता है। आकाशद्रव्य की सिद्धि तो उसके अवगाह गुण द्वारा होती है, एक साथ संपूर्ण पदार्थों को अवगाह (माश्रय) देनारूप कार्य द्वारा आकाशद्रव्य सिद्ध होता है, अर्थात् अखिल पदार्थों का सर्व साधारण आधारभूत कोई एक पदार्थ अवश्य है अवगाह की अन्यथानुपपत्ति होने से, इसप्रकार अवगाह गुण द्वारा आकाशद्रव्य सिद्ध होता है । प्राकाश में शब्दरूप विशेष गुण नहीं है अपितु अवगाहरूप विशेषगुण है ऐसा निर्बाध सिद्ध होता है ।
।। आकाशद्रव्यविचार का सारांश समाप्त ।
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