Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
धर्मादेश्चास्मदाद्यप्रत्यक्षत्वे 'देवदत्तं प्रत्युपसर्पन्तः पश्वादयो देवदत्तगुणाकृष्टास्तं प्रत्युपसर्पणवत्त्वाद्वस्त्रादिवत्' इत्यनुमानं न स्यात्; व्याप्तेरग्रहणात् । मानसप्रत्यक्षेण व्याप्तिग्रहणे सिद्ध धर्मादेरस्मदादिप्रत्यक्षत्वम् । अथ 'बाह्य ेन्द्रियेणास्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति' इति हेतुविशेष्यते तदा साधनवैकल्यं दृष्टान्तस्य, सुखादेस्तथा प्रत्यक्षत्वाभावात् ।
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यदि च वीचीतरंगन्यायेन शब्दोत्पत्तिरिष्यते तदा प्रथमतो वक्तृव्यापारादेकः शब्दः प्रादुर्भवति, अनेको वा ? यद्येकः; कथं नानादिक्कानेक शब्दोत्पत्तिः सकृदिति चिन्त्यम् । सर्वदिक्कतात्वादिव्यापार
वैशेषिक —— इसतरह हमारे " ग्रस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सति विभुद्रव्य विशेष गुणत्वात् " हेतु को विपक्ष व्यावृत्ति वाला निश्चित नहीं होने के कारण सदोष कहेंगे तो प्रनित्यः शब्दः कृतकत्वात् इत्यादि अनुमान का कृतकत्वात् हेतु भी गलत ठहरेगा ।
जैन - ऐसी बात नहीं है, कृतकत्व हेतु विपक्ष से भली प्रकार व्यावृत्त होता है उसका विपक्ष में रहना प्रमाण से बाधित है, अर्थात् कृतकत्व हेतु का नित्यरूप विपक्ष में रहना किसी प्रमाण से भी सिद्ध नहीं है ।
यदि आप धर्म अधर्म को [ पुण्य-पाप को ] अस्मदादि के अप्रत्यक्ष मानते हैं तो उन्हीं का निम्नलिखित अनुमान गलत ठहरता है कि देवदत्त के पास प्राते हुए पशु आदि जीव देवदत्त के गुणों से [ धर्मादि से ] आकृष्ट होकर श्राया करते हैं क्योंकि वे पशु उसी के प्रति उत्सर्पणशील हैं, जैसे वस्त्र प्रादि पदार्थ । यह अनुमान इसलिये गलत ठहरता है कि इसमें व्याप्ति ग्रहण नहीं है अर्थात् जो जो देवदत्त के प्रति उत्सर्पणशील हैं वह वह देवदत्त के गुण से आकृष्ट हैं ऐसा निश्चय नहीं होगा क्योंकि देवदत्त के गुण स्वरूप धर्मादि को प्रापने अप्रत्यक्ष माना है । यदि मानस प्रत्यक्ष द्वारा व्याप्ति का ग्रहण होना स्वीकार करेंगे तो धर्मादिक अस्मदादि प्रत्यक्ष है ऐसा सिद्ध होता है ।
वैशेषिक – क्षणिकः शब्दः अस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सति विभुद्रव्य विशेषगुणत्वात् सुखादिवत् ऐसा जो पहले अनुमान दिया था उसमें स्थित हेतु श्रगमक है ऐसा आप जैन का कहना है सो उस हेतु में "बाह्येन्द्रियेण " इतना विशेषण और बढ़ा देते हैं अर्थात् बाह्य ेन्द्रियेण ग्रस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सति विभुद्रव्य विशेषगुणत्वात् जो बाह्य इन्द्रियों से हमारे द्वारा प्रत्यक्ष हो सके एवं विभु [ व्यापक ] द्रव्य का विशेष गुण होवे वह क्षणिक होता है, इसप्रकार का हेतु देने से धर्मादि के साथ व्यभिचार नहीं होगा ?
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