Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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आकाशद्रव्य विचारा
२६१ स्मदादिभिः प्रतीयमानैश्चन्द्रार्कादिभिश्च । अस्मदादिविलक्षणर्बाह्य न्द्रियान्तरेण तत्प्रतीतो शब्देपि तथा प्रतोति : किन्न स्यात् ? अत्र तथानुपलम्भोऽन्यत्रापि समान।।
एतेनेदमपि प्रत्युक्तम्-'गुणः शब्दः सामान्यविशेषवत्त्वे सति बाह्य केन्द्रिय प्रत्यक्षत्वाद्पादिवत' इति; वाय्वादिभिर्व्यभिचारात्, ते हि सामान्यविशेषवत्त्वे सति बाह्य केन्द्रियप्रत्यक्षा न च गुणाः, अन्यथा द्रव्यसंख्याव्याघात: स्यात् । ततः शब्दानां गुणत्वासिद्धरयुक्तमुक्तम्-'यश्चषामाश्रयस्तत्पारिशेष्यादाकाशम्' इति ।
यच्चोक्तम्-'न तावत्स्पर्शवतां परमाणूनाम्' इत्यादि; तत्सिद्धसाधमम् ; तद्गुणत्वस्य तत्रानभ्युपगमात् । यथा चास्मदादिप्रत्यक्षत्वे शब्दस्य परमाणुविशेषगुणत्वस्य विरोधस्तथाकाशविशेष
कर सकते हैं । यदि कोई कहे कि चन्द्र सूर्य आदि केवल चक्षु इन्द्रिय से ही प्रत्यक्ष हो सो बात नहीं है योगीजन इन चन्द्रादि को चक्षु के समान अन्य स्पर्शनादि इन्द्रियों से प्रत्यक्ष कर लेते हैं ? सो यह बात शब्द में भी है, योगीजन शब्द को चक्षु आदि इंद्रिय द्वारा प्रत्यक्ष कर सकते हैं । शब्द के विषय में वैसा प्रत्यक्ष होना स्वीकार न करो तो चन्द्र आदि के विषय में भी वैसा प्रत्यक्ष होना नहीं मान सकते, दोनों जगह समान बात है।
शब्द का एक द्रव्यपना जैसे खण्डित होता है वैसे गुणः शब्दः सामान्य विशेषवत्वे सति बाह्य केन्द्रिय प्रत्यक्षत्वात रूपादिवत् इत्यादि अनुमान से माना गया गुणपना भी खण्डित होता है, क्योंकि इस अनुमान के हेतु का भी वायु, आदि के साथ व्यभिचार होता है। वायु आदि पदार्थ सामान्य विशेषवान होकर बाह्य एक इन्द्रिय प्रत्यक्ष हैं किन्तु गुण नहीं हैं, यदि इन वायु आदि को गुण मानेंगे तो आपकी द्रव्यों की संख्या का व्याघात होवेगा। आप वैशेषिक के यहां पृथिवी, जल, वायु, अग्नि, दिशा, आकाश, मन, काल और प्रात्मा इसप्रकार नौ द्रव्य माने हैं सो जो बाह्य न्द्रिय प्रत्यक्ष हो वह गुण है ऐसा कहने से वायु प्रादि चारों द्रव्य गुण रूप बन जायेंगे । इसलिये शब्दों को गुण रूप मानना प्रसिद्ध हो जाता है, इसप्रकार "जो शब्दों का प्राश्रय है वह पारिशेष्य से आकाश है" इत्यादि कथन अयुक्त होता है ।।
वैशेषिक ने कहा था कि शब्द स्पर्शमान परमाणुओं का गुण नहीं है इत्यादि, सो यह कहना हम जैन के लिए सिद्ध है, क्योंकि हम जैन भी शब्दको परमाणुगों का गुण नहीं मानते हैं । शब्द हमारे प्रत्यक्ष होते हैं अतः परमाणुओं का विशेष गुण नहीं
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