Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
२८२
प्रमेयकमलमार्तण्डे केचित्प्रदीपादयो भावाः क्षणिकाः सामान्यादयस्त्वक्षणिकास्तथास्मदादिप्रत्यक्षा अपि विभुद्रव्यविशेषगुणा: 'केचित्क्षणिकाः केचिदक्षणिका भविष्यन्ति' इति सन्दिग्घो व्यतिरेकः । प्रथाक्षणिके क्वचिदस्मदादिप्रत्यक्षत्वविशेषणविशिष्टस्य विभुद्रव्यविशेषगुणत्वस्यादर्शनात्ततो व्यावृत्तिसिद्धिः; न; भवदीयादर्शनस्य साकल्येन भावाभावाप्रसाधकत्वात्, अन्यथा परलोकादेरप्यभावानुषङ्गः। सर्वस्या
सति" यह विशेषण नहीं हो तो खनन-खोदने आदि क्रिया से प्राकाश भी कादाचित्क रूप प्रतीत होता है अतः जो कादाचित्करूप प्रतीत हो वह अनित्य है ऐसा कहना व्यभिचरित होता था उस व्यभिचार को सहेतुकत्वे सति विशेषण व्यावृत्त [ हटाता] करता है, इसतरह का विशेषण विशिष्ट हेतु होवे तो ठीक बात है वरना तो विशेषण देना व्यर्थ ही है। यहां वैशेषिक ने शब्द को क्षणिकरूप सिद्ध करने के लिये "शब्दः क्षणिकः अस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सति विभुद्रव्य विशेषगुणत्वात्" ऐसा विशेषण सहित हेतु वाला अनुमान प्रस्तुत किया है इस "विभुद्रव्य विशेषगुणत्वात्" हेतु का विशेषण "अस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सति" है किन्तु यह विशेषण हेतु का विपक्ष जो अक्षणिकत्व है उससे हेतु को पूर्णरूप से व्यावृत्त नहीं कर पाता है अतः यह विशेषण व्यर्थ ठहरता है। अस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सति यह विशेषण किसप्रकार व्यर्थ है सो ही बताते हैं जो अस्मदादि के प्रत्यक्ष हो वह अक्षणिकत्व के विरुद्ध हो ऐसा नहीं है । हम देखते हैं कि सामान्य प्रादि पदार्थ अक्षणिक हैं किन्तु वे अस्मदादि के प्रत्यक्ष होते हैं। अतः जिस तरह प्रदीपादि कोई पदार्थ क्षणिक होकर हमारे प्रत्यक्ष हैं और कोई सामान्यादि पदार्थ अक्षणिक होकर भी हमारे प्रत्यक्ष हैं, इसीतरह विभुद्रव्य के कोई विशेषगुण क्षणिक और कोई अक्षणिक होंगे, इसप्रकार विभुद्रव्य विशेषगुणत्वात् हेतु सन्दिग्धव्यतिरेकी होता है।
वैशेषिक-कहीं [ धर्मादि में ] अक्षणिक वस्तु में अस्मदादिप्रत्यक्षत्वरूप विशेषण युक्त जो विभुद्रव्य का विशेष गुणरूप हेतु है वह देखा नहीं जाता अतः उस हेतु को विपक्ष से व्यावृत्ति सिद्ध होवेगी। अर्थात् विभुद्रव्य का जो विशेष गुण हमारे जैसे व्यक्ति के प्रत्यक्ष होता है वह अक्षणिक नहीं रहता बल्कि क्षणिक ही हुआ करता है ऐसा विभुद्रव्य का विशेष गुण नहीं देखा कि जो हमारे प्रत्यक्ष होकर अक्षणिक हो !
__ जैन-ऐसी बात नहीं है आपके नहीं देखने मात्र से पूर्णरूपैन वस्तु का अभाव सिद्ध करना शक्य नहीं है, यदि एक व्यक्ति के नहीं देखने से उसरूप वस्तु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org .