Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
प्राकाशद्रव्य विचारः
२७५
विपर्ययात् । नन्वत्र प्रत्यक्षम्, अनुमान वा बाधकं कल्प्येत ? प्रत्यक्षं चेत् ; किमेकत्वविषयम, क्षणिकत्वविषयं वा? न तावदेकत्व विषयम् ; समविषयत्वेन तदनुकूलत्वात् । नापि क्षणिक त्वविषयम् । शब्देऽन्यत्र वा तस्य विवादगोचरापन्नत्वात् । नाप्यनुमानम् ; प्रत्यभिज्ञानं हि मानस प्रत्यक्षं भवन्मते तस्य कथमनुमानं बाधकम् ? प्रत्यक्षमेव हि बाधकम् पामताग्राह्य कशाखाप्रभवत्वानुमानस्य, न पुनस्तदनुमानं प्रत्यक्षस्य । अथाध्यक्षाभासत्वादस्यानुमानं बाधकम्, यथा स्थिरचन्द्रार्कादिविज्ञानस्य
ज्ञान में बाधक बन नहीं सकता, क्योंकि समान विषयवाला होने से वह तो उसके अनुकूल ही रहेगा । क्षणिकत्व विषयवाला प्रत्यक्ष ज्ञान भी प्रत्यभिज्ञान का बाधक नहीं है, क्योंकि शब्द हो चाहे अन्य कोई पदार्थ हो उसकी क्षणिकता अभी तक विवाद की कोटि में ही है अर्थात् किसी भी वस्तु का सर्वथा क्षणिकपना आज तक भो सिद्ध नहीं हुआ है।
अनुमान प्रमाण भी शब्द के कालान्तर स्थायित्व के ग्राहक प्रत्यभिज्ञान का बाधक होना अशक्य है, क्योंकि आप वैशेषिक ने प्रत्यभिज्ञान को मानस प्रत्यक्षरूप माना है सो ऐसे प्रत्यक्ष ज्ञानको अनुमान प्रमाण कैसे बाधित कर सकता है ? बाधक तो प्रत्यक्ष ही बनता है, जैसेकि ये सब फल पके हैं, क्योंकि एक ही शाखा में लगे हैं, ऐसा किसी ने अनुमान प्रमाण उपस्थित किया सो इस अनुमान में प्रत्यक्ष से बाधा आयेगी अर्थात् प्रत्यक्ष से उन फलों में से बहुत से फल कच्चे दिखायी देते हैं, सो पूर्वोक्त अनुमान को यह प्रत्यक्ष ज्ञान बाधित करेगा, अतः निश्चित होता है कि प्रत्यक्ष अनुमान का बाधक होता है, अनुमान प्रत्यक्ष को बाधित नहीं कर सकता।
वैशेषिक- ठीक है, किन्तु शब्द को कालांतर स्थायी बतलानेवाला प्रत्यभिज्ञान स्वरूप प्रत्यक्षज्ञान तो प्रत्यक्षाभास है, अतः ऐसे प्रत्यक्षाभास को अनुमान बाधित कर देता है, जैसे चन्द्र, सूर्य आदि अस्थिर पदार्थों को स्थिर रूप से प्रतिभासित करने वाले ज्ञानको देश से देशांतर गमनरूप हेतु वाला अनुमान प्रमाण बाधित कर देता है । अर्थात् किसी को सूर्य और चन्द्रादिक स्थिर हैं ऐसा साक्षात् ज्ञान होता है, क्योंकि सामान्य व्यक्ति को जल्दी से यह नहीं मालूम पड़ता है कि सूर्यादि पदार्थ अस्थिर हैं सो उस व्यक्ति के प्रत्यक्ष ज्ञानको जो वास्तविक प्रत्यक्ष नहीं है, अनुमान बाधित कर देता है कि सूर्यादि ज्योतिषी स्थिर नहीं हैं ये तो पूर्व से पश्चिम दिशा तक गमन कर रहे हैं इत्यादि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org