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प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रत्यभिज्ञानं तत्सम्बन्धितया तं प्रतिपद्यमानमेकत्वविशिष्टमेव प्रतिपद्यते, अन्यथा 'उपाध्यायोक्तं शृणोमि' इति प्रतीतिर्न स्यात्, किन्तु 'तदुक्तोद्भूतं तत्सदृशं शब्दान्तरं शृणोमि' इति प्रतीति: स्यात् । वीचीतरंगन्यायेन तदुत्पत्तिश्चात्रैव निषेत्स्यते ।
यदि पुनर्ल नपुनर्जातनखकेशादिवत्सदृशापरापरोत्पत्तिनिबन्धनमेतत्प्रत्यभिज्ञानं न कालान्तरस्थायित्वनिबन्धनम् ; तबाणादावपि समानम् । न समानमत्र बाधकसद्भावात् तथा कल्पना, नान्यत्र
वैशेषिक -जिस प्रकार नख और केश पुनः पुनः काट कर पुनः पुनः तत्सदृश अन्य अन्य उत्पन्न होते हैं और उनमें सदृश निमित्तक प्रत्यभिज्ञान होता है, उसीप्रकार शब्द कर्ण प्रदेश तक अन्य अन्य तत्सदृश उत्पन्न होता है और उसमें सदृश निमित्तक प्रत्यभिज्ञान होता है, किन्तु कालान्तर स्थायी शब्द निमित्तक अर्थात् एकत्व निमित्त प्रत्यभिज्ञान नहीं होता, अभिप्राय यह है कि शब्द में जो प्रत्यभिज्ञान होता है वह सदृशमूलक है एकत्वमूलक नहीं है ।
जैन- यही कथन बाणादि में भी घटित कर सकते हैं, अर्थात् धनुष से निर्गत बाण लक्ष्य तक नहीं जाता अपितु तत्सदृश उत्पन्न हुआ अन्य बाण ही जाता है तथा उसमें जो प्रत्यभिज्ञान होता है वह सदृशमूलक है एकत्वमूलक नहीं ऐसा कहना होगा। [ जो सर्वथा विरुद्ध होगा ]
वैशेषिक-बारण के समान शब्द की बात नहीं है, शब्द को कालांतर स्थायी मानने में एवं उसमें एकत्वमूलक प्रत्यभिज्ञान मानने में बाधा आती है, अतः शब्द को क्षणिक मानते हैं । बाणादि पदार्थों को कालान्तर स्थायी मानने में बाधक प्रमाण नहीं है अतः उनको उस रूप माना जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि शब्द में प्रत्यभिज्ञान होने से कालान्तर स्थायित्व एवं एकत्व है ऐसा जैन का कहना सिद्ध नहीं होता।
जैन - अच्छा तो बताइये कि शब्द को अक्षणिक बतलानेवाले प्रत्यभिज्ञान में अर्थात् यह वही उपाध्याय का कहा हुप्रा शब्द है इत्यादिरूप जो ज्ञान होता है उसमें बाधा पाती है ऐसा जो कहा सो इस प्रत्यभिज्ञान को बाधा देनेवाला कौनसा प्रमाण होगा, प्रत्यक्ष या अनुमान, प्रत्यक्ष कहो तो वह भी कौनसा एकत्व विषयवाला या क्षणिकत्व विषयवाला, एकत्व विषयवाला प्रत्यक्ष प्रमाण एकत्व विषयवाले ही प्रत्यभि
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