Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
ननु नाद्य एवाकाशतच्छङ्खमुखसंयोगेश्वरादेः समवाय्यसमवायिनिमित्तकारणाज्जात : शब्दः श्रोत्रेणागत्य सम्बध्यते येनायं दोषः, अपि तु वीचीतरङ्गन्यायेनापरापर एवाकाशशब्दादिलक्षणात् समवाय्यसमवायिनिमित्तकारणज्जात : तेनाभिसम्बध्यते; तदप्यसमोचीनम् ; सर्वत्र क्रियोच्छेदानुषङ्गात् । 'बागादयोपि हि पूर्वपूर्वसमानजातीयलक्षणप्रभवा लक्ष्यप्रदेशव्यापिनो न पुनस्ते एव' इति कल्पयितुं शक्यत्वात् । तत्र प्रत्यभिज्ञानान्नित्यत्वसिद्धेनैवं कल्पना चेत्, नन्विदं प्रत्यभिज्ञानं शब्देपि समानम् 'उपाध्यायोक्त शृणोमि शिष्योक्त वा शृणोमि' इति प्रतीतेः ।
वैशेषिक-उक्त प्रयास व्यर्थ नहीं होगा, शब्द के विषय में ऐसी मान्यता है कि आकाश, तथा शंख्य और मुखका संयोग एवं ईश्वर आदि समवायो असमवायी कारणों से पहला शब्द उत्पन्न होता है वह शब्द आकर कर्ण से सम्बद्ध नहीं होता किन्तु वीची तरंग न्याय के समान जिसके अाकाश, शब्द, ईश्वर आदि समवायी तथा असमवायी कारण होते हैं ऐसे अपर अपर ही शब्द कर्ण से सम्बद्ध होता है, अर्थात् जैसे समुद्र में लहरे उठती हैं वे एक न होकर अनेक हुआ करती हैं, प्रथम एक लहर उठती है, फिर उससे आगे आगे दूर तक दूसरी दूसरी लहरे बनती जाती हैं, वैसे शब्द पहले तो प्राकाश आदि कारणों से उत्पन्न होता है पुनः उससे आगे आगे कर्ण प्रदेश तक अन्य अन्य शब्द आकाश आदि से उत्पन्न होते हैं, अंतिम कर्ण प्रदेश के पास जो शब्द उत्पन्न होता है उससे कर्ण का सम्बन्ध होता है।
जैन-यह कथन असत्य है, इस तरह मानेंगे तो सब जगह सब वस्तु में क्रियाशीलता का अभाव हो जायगा, कोई कह सकता है कि बाण आदि पदार्थ भी वैशेषिक के शब्द के समान वीची तरंग न्याय से लक्ष्य स्थान पर पहुंचते हैं अर्थात् जो बाण धनुष से छूटा है वह लक्ष्य स्थान पर नहीं पहुंचता अपितु बीच में अन्य अन्य ही बाण पूर्व पूर्व बाण से उत्पन्न होते हैं अन्त में लक्ष्य स्थान के निकट जो बाण उत्पन्न होगा वही लक्ष्य को वेधेगा ।
वैशेषिक-बाण आदि पदार्थ के विषय में वीची तरंग की कल्पना नहीं होवेगी क्योंकि प्रत्यभिज्ञान द्वारा [ यह वही बाण है जो धनुष से निकला था ] बाण की नित्यता मालम होती है ।
जैन-यही प्रत्यभिज्ञान शब्द में भी सम्भव है, इसमें भी उपाध्याय के कहे हुए शब्द को मैं सुन रहा हूँ, शिष्य के कहे शब्द को सुन रहा हूँ इत्यादि प्रत्यभिज्ञान से
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