Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
स्य वा भावात्, तत्प्रतोत्यन्यथानुपपत्तेश्च ताभ्यां जात्यन्तरतया श्लेषः स्निग्धरूक्षतानिबन्धनो बन्धोऽभ्युपगन्तव्योऽसौ सक्तुतोयादिवत् । विश्लिष्टरूपतापरित्यागेन हि संश्लिष्टरूपतया कथञ्चिदन्यथात्वलक्षणेकत्वपरिणति: सम्बन्धोऽर्थानां चित्रसंवेदने नीलाद्याकारवत् । न हि चित्रसंविदो जात्यन्तररूप
निमित्त से आती है, जैसे सत्तू जल आदि में सम्बन्ध होता है ।
भावार्थ-बौद्ध पदार्थों को स्थिर, स्थल, साधारण नहीं मानता है, उसके यहां सभी पदार्थ क्षणिक, सूक्ष्म परमाण मात्र एवं विशेषरूप ही स्वीकार किए गये हैं, इनमें से यहां संबंधवाद प्रकरण में स्थूलत्व पर विचार कर रहे हैं, स्थिरत्व का समर्थन क्षणिकभंगवाद का निरसन में कर दिया है, और सामान्यवाद में साधारणत्व का समर्थन कर चुके हैं। घट आदि पदार्थों के परमाण एक दूसरे से सम्बन्धित नहीं हो सकते, क्योंकि उन परमाण ओं का परस्पर में एक देश से संबंध होना माने तो परमाण के अंश सिद्ध होते हैं और सर्वदेश से संबंध माने तो सब परमाणु मिलकर एक अण पिण्ड बराबर मात्र रह जायेंगे ऐसा बौद्ध का कहना है, सो जैनाचार्य बौद्ध को समझा रहे हैं कि परमाणु प्रों का जो संबंध होता है वह न तो एक देश से होता है और न सर्वदेश से, वह तो "स्निग्ध रूक्षत्वाद् बंधः" उन्हीं परमाण ओं में होनेवाले स्निग्ध तथा रूक्ष गुणों के कारण होता है, नैयायिक आदि पर वादी के यहां इस तरह का संबंध का सिद्धान्त नहीं होने से उनके संबंध को भले ही बौद्ध दूषित ठहरावे किन्तु जैन के अकाटय नियम एवं सिद्धान्त पर दोष की गंध भी नहीं है। परमाण प्रों का परस्पर संबंध होने के बाद वे एक पिण्डरूप भी हो जाते हैं और स्थलता को भी धारण करते हैं। यदि परमाण अओं को सर्वथा पृथक्-पृथक् ही माना जाय तो यह साक्षात् दिखाई देनेवाली स्थूलता असत् ठहरती है, अतः प्रतीति के अनुसार संबंध को स्वीकार करना चाहिए। संबंध को नहीं मानने से अर्थ क्रिया का अभाव आदि अनेकों दोष उपस्थित होते हैं, उनका यथाक्रम निर्देश करते जारहे हैं । घट आदि पदार्थों के परमाण नों का विश्लिष्टरूप पूर्व अवस्था का त्याग और कथंचित् पर्याय रूप से संश्लेष होकर अन्य प्रकार से एकत्व परिणति हो जाना ही संबंध कहलाता है, जैसे कि पाप बौद्ध चित्र ज्ञान में नील, पीत आदि आकारों की एकत्वरूप परिणति मानते हैं। चित्र ज्ञान में जो नील, पीत आदि आकारों का संश्लेष है वह एक जात्यन्तर रूप से उत्पाद ही है,
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