________________
संबंधसद्भाववाद:
सर्वथाध्यकार्यकारणस्य वस्तुत्वानुपपत्त ेः खरशृ गवत् ।
न च कार्यस्यानुत्पन्नस्यैव कार्यत्वं धर्मः प्रसत्त्वात् । नाप्युत्पन्नस्यात्यन्तं भिन्नं तत्; तद्धर्मस्वात् । तत एव कारणस्यापि कारणत्वं धर्मो नैकान्ततो भिन्नम् । तच्च ततोऽभिन्नत्वात्तद्ग्राहिप्रत्यक्षेणैव प्रतीयते तद्व्यक्तिस्वरूपवत् । दृश्यते हि विपासाद्याक्रान्तचेतसामितरार्थव्यवच्छेदेनाबाल तदपनोदसमर्थे जलादो प्रत्यक्षात्प्रवृत्तिः । तच्छक्तिप्रधानतायां तु कार्यदर्शनात्तन्निश्चीयते तद्वयतिरेकेणास्यासम्भवात् । न च स्वरूपेणा कार्यकारणयोस्तद्भावः सम्भवति । नाप्युत्तरकालं भिन्नेन तेनानयोः कार्यकारणताऽभिन्ना कर्तुं शक्या; विरोधात् । नापि भिन्ना; तयोः स्वरूपेण कार्यकारणताप्रसंगात् ।
१६१
समाधान - सो यही बात कार्यपना आदि धर्मों की है, अर्थात् जो सर्वथा कार्य या अकारणरूप है वह वस्तु ही नहीं हो सकती, जैसे कि गधे के सींग सर्वथा अकार्य कारणरूप है ग्रतः वस्तुभूत नहीं है । कार्य कारण के विषय में यह बात ध्यान में रखने की है कि जो कार्य अभी अनुत्पन्न है उसका कार्यत्व धर्म नहीं हुआ करता, क्योंकि उसका अभी सत्त्व नहीं है, तथा कार्य के उत्पन्न होनेपर उस कार्यभूत पदार्थ से कार्यपना अत्यन्त भिन्न भी नहीं पड़ा रहता, क्योंकि उसीका वह धर्म है । इसीप्रकार कारणभूत पदार्थ का कारणपना धर्म भी एकान्त से भिन्न नहीं है, वह उससे अभिन्न होने से कारणभूत पदार्थ को ग्रहण करनेवाले प्रत्यक्ष द्वारा ही कारणपना प्रतीत हो जाता है, जैसे कि उस व्यक्ति का स्वरूप प्रतीत होता है । देखा जाता है कि प्यास आदि पीड़ा से प्राक्रांत पुरुषों के इतर वस्तु का व्यवच्छेद करके प्यासादि को दूर करने में समर्थ ऐसे जल प्रादि कारणभूत पदार्थ में प्रत्यक्ष से प्रवृत्ति होती हुई आबाल गोपाल प्रसिद्ध है ।
Jain Education International
जब कारणभूत पदार्थ के शक्ति की प्रधानता रहती है तब कार्य को देखकर उसके कारणपने का निश्चय करते हैं कि यह कार्य उस कारण के बिना नहीं हो सकता था इत्यादि । जिन पदार्थों में निज स्वरूप से कार्य कारणपना नहीं है उनमें उसके होनेपर होना इत्यादि रूप तद्भाव बन नहीं सकता । कारण के उत्तर कालमें किसी भिन्न सम्बन्ध द्वारा कार्य कारणभूत दो पदार्थों का किया जाना शक्य नहीं है, क्योंकि भिन्न सम्बन्ध द्वारा अभिन्नता करना भिन्न संबंध द्वारा भिन्न कार्य कारणपना किया जाना भी शक्य नहीं है,
अभिन्न स्वरूप कार्य
कारणपना विरुद्ध है ।
क्योंकि यदि
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org