Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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संबंधसद्भाववादः
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व्यतिरेक होने से वक्तृत्व हेतु सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध करने वाला मानना पड़ेगा तथा कार्य कारण भाव का ज्ञान सम्पूर्ण वस्तु को जाने बिना कैसे होवे क्योंकि सभी धूम और अग्नि को जानेंगे तभी तो उनका कार्य कारण संबंध जोड़ेंगे ग्रन्यथा नहीं । कारण में कार्य को उत्पन्न करने की शक्ति भी प्रत्यक्ष नहीं होती है इस तरह सम्बन्ध सिद्ध नहीं हो पाता है ।
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उत्तरपक्ष जैन :— यह कथन प्रसमीचीन है । सम्बन्ध प्रत्यक्ष से प्रतीत होता है, उसका लोप करना अशक्य है तन्तुयों का सम्बन्ध रूप वस्त्र प्रत्यक्ष दिखाई देता है । बौद्ध संबंध को नहीं मानोगे तो रस्सी का एक छोर अन्य भागों से पृथक् होने से उसको एक तरफ से खींचते ही सारी रस्सी खींचती हुई नहीं आनी चाहिए । फिर कुप्रा पर पानी कैसे भरेंगे क्योंकि रस्सी का एक भाग हाथ में है अन्य भाग कुप्रा में है और वे सब भाग पृथक् पृथक् हैं अतः बाल्टी कैसे खींचे ? आपका पढ़ाया हुआ विद्यार्थी कहेगा कि यह बाल्टी खींच नहीं सकती क्योंकि रस्सी के सब अवयव बिखरे हैं इसलिये इन व्यवहारों को देखकर सम्बन्ध को मानना पड़ेगा, वह भी संवृत्ति से नहीं किन्तु वास्तविकता से, क्योंकि कल्पना से कोई काम नहीं होता है ।
सम्बन्ध यही है कि दो वस्तुनों की विश्लिष्ट अवस्था बदलकर एक नयी संश्लिष्ट प्रवस्था हो जाना, यह अवस्था का परिवर्तन वस्तु के स्निग्धत्व और रुक्षत्व के कारण हुआ करता है । सम्बन्ध कई प्रकार का होता है । कहीं पर एक दूसरे के प्रदेशों का अनुप्रवेश होना रूप होता है जैसे सत्तु और जल के प्रदेश परस्पर मिश्रित होते हैं । कहीं पर श्लेष रूप होता है जैसे दो अंगुलियों का । परमाणु में हम अवयव ( भाग ) रूप अंश नहीं मानते हैं अर्थात् जब कभी एक परमाणु अन्य परमाणुत्रों से सम्बन्ध को प्राप्त होता है वह दिशादि के स्वभाव भेद से प्राप्त होता है इसलिये वे सब परमाणु उस एक अरगुमात्र नहीं होते हैं । आपने निष्पन्न वस्तु में सम्बन्ध होता है या अनिष्पन्न में ऐसा पूछा था उसका उत्तर यही है कि निष्पन्न दो वस्तुनों में ही सम्बन्ध होगा और सम्बन्ध होने पर उनकी अवस्था एक जात्यन्तर रूप रहेगी । संबंध होने पर पदार्थ पृथक् नहीं होते हैं जैसे चित्र ज्ञान में नीलादि अनेक प्रकार पृथक् नहीं होते हैं तथा कार्य कारण का नियम इतना ही है कि जिसके होने पर जो नियम से हो और नहीं होने पर न हो । बौद्ध ने कहा था कि यदि कारण पहले और कार्य
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