Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अर्थस्य सामान्यविशेषात्मकत्ववाद:
२०१ यच्चोक्तम्-'तादात्म्यमित्यत्र कीदृशो विग्रहः कर्तव्यः' इत्यादि; तत्थं विग्रहो द्रष्टव्यः-तस्य वस्तुन आत्मानौ द्रव्यपर्यायौ सत्त्वासत्त्वादिधौं वा तदात्मानौ, तच्छब्देन वस्तुनः परामर्शात्, तयो
र्भावस्तादात्म्यम्-भेदाभेदात्मकत्वम् । वस्तुनो हि भेद : पर्यायरूपतव, अभेदस्तु द्रव्यरूपत्वमेव, भेदाभेदौ तु द्रव्यपर्यायस्वभावावेव । न खलु द्रव्यमानं पर्यायमात्रं वा वस्तु; उभयात्मन : समुदायस्य वस्तुत्वात् । द्रव्यपर्याययोस्तु न वस्तुत्वं नाप्यवस्तुता; किन्तु वस्त्वेकदेशता । यथा समुद्रांशो न समुद्रो नाप्यसमुद्रः, किन्तु समुद्रैकदेश इति ।
‘स पट प्रात्मा येषाम्' इत्यपि विग्रहे न दोषः; अवस्थाविशेषा, पेक्षया तन्तूनामेकत्वस्याभीष्टत्वात्।
'ते तन्तव प्रात्मा यस्य इति विग्रहे तन्तूनामनेकत्वे पटस्याप्यनेकत्वं स्यादिति चेत् ; किमिदं तस्यानेकत्वं नाम-किमनेकावयवात्मकत्वम्, प्रतितन्तु तत्प्रसङ्गो वा? प्रथमपक्षे सिद्धसाध्यता; माता
वैशेषिक ने प्रश्न किया था कि "तादात्म्य" पद का विग्रह किस तरह करना चाहिये इत्यादि, सो उसका उत्तर यह है कि "तस्य वस्तुनः" प्रात्मानौ-द्रव्यपर्यायौ सत्वा सत्वादि धर्मों वा तदात्मानौ तयोर्भावः तादात्म्यम्" तत् मायने वस्तु या पदार्थ, आत्मा मायने उस वस्तु का स्वरूप, अर्थात् द्रव्यपर्याय अथवा सत्व आदि धर्मों को अात्म या स्वरूप कहते हैं उस वस्तु स्वरूप का जो भाव है वह तादात्म्य कहलाता है, कथंचित् भेदाभेदात्मकपना होने को भी तादात्म्य कहते हैं, क्योंकि पर्यायपने से वस्तु में भेद है और द्रव्यपने से अभेद है, द्रव्य और पर्याय स्वभाव ही भेदाभेदरूप हुआ करते हैं, वस्तु न द्रव्यमात्र है और न पर्यायमात्र ही है, किन्तु उभयात्मक समुदाय हो वस्तु है। द्रव्य और पर्याय को अकेले अकेले को वस्तु नहीं कहते न अवस्तु ही कहते हैं किन्तु वस्तु को एक देश कहते हैं, जैसे समुद्र का अंश न समुद्र है और न असमुद्र ही है किन्तु समुद्र का एक देश है ।
"सः पटः आत्मा येषां" इत्यादि रूप तादात्म्य शब्द का विग्रह करो तो भी कोई दोष नहीं है, क्योंकि तन्तुओं में अवस्था विशेष की अपेक्षा कथंचित् एकपना भी माना जाता है।
___"ते तन्तवः प्रात्मा यस्य" इसतरह तादात्म्य पद का विग्रह करे तो तन्तु अनेक रूप होने से वस्त्र भी अनेक रूप बन जायगा ऐसी कोई शंका करे तो उस व्यक्ति
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