Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेय कमलमार्त्तण्डे
षात् ? विरोधस्याभावरूपत्वे सामान्यविशेषत्वाभावानुपपत्तिश्च । गुणरूपत्वे गुणविशेषणत्वाभावानुषंग: ।
अथ षट्पदार्थव्यतिरिक्तत्वात् पदार्थविशेषो विरोधोऽनेकस्थो विरोध्यविरोधक प्रत्यय विशेषप्रसिद्धः समाश्रीयते ; तदाप्यस्यासम्बद्धस्य द्रव्यादौ विशेषणत्वम्, सम्बद्धस्य वा ? न तावदसम्बद्धस्य; प्रतिप्रसंगात्, दण्डादौ तथाऽप्रतीतेश्च । न खलु पुरुषेणासम्बद्धो दण्डस्तस्य विशेषणं प्रतीतो येनात्रापि तथाभावः । श्रथ सम्बद्धः; किं संयोगेन समवायेन, विशेषरणभावेन वा ? न तावत्संयोगेन ; अस्याद्रव्यत्वेन संयोगानाश्रयत्वात् । नापि समवायेन अस्य द्रव्यगुणकर्मसामान्य विशेषव्यतिरिक्तत्वेनासम
प्रभाव रूप मानते हैं तो उसमें सामान्य या विशेषपना संभव होने से विशेषणत्व की अनुपपत्ति ही रहेगी । विरोध को गुणस्वभाव वाला मानते हैं तो भी बात नहीं बनती, क्योंकि विरोध यदि गुणरूप है तो उसमें विशेषरणरूप गुणपना संभव नहीं होगा, गुण में पुनः गुण नहीं होता ।
वैशेषिक - द्रव्य, गुण इत्यादि छह पदार्थों के अतिरिक्त विरोध नामा पदार्थ माना जाता है जो कि अनेकस्थ है और विरोध्य-विरोधक ज्ञान का कारण होने से प्रसिद्ध है ।
आता
जैन- - इस तरह का लक्षण वाला विरोध मान लो तो भी प्रश्न होता है कि वह विरोध द्रव्य आदि में असम्बद्ध रहकर विशेषण बनता है, या सम्बद्ध होकर विशेषरण बनता है ! श्रसम्बद्ध रहकर विशेषण बन नहीं सकता, क्योंकि असम्बद्ध विशेषरण बनते हैं तो सहयाचल विन्ध्याचल का विशेषण बन सकेगा, ऐसा प्रतिप्रसंग | तथा दण्ड ग्रादि विशेषण देवदत्त आदि से असम्बद्ध रहकर उसके विशेषणपने को प्राप्त होते हुए देखे नहीं जाते हैं, जिससे कि इस विरोधरूप विशेषण में असम्बद्ध रहकर ही विशेषणपना सिद्ध हो सके । विरोधनामा विशेषण पदार्थ में सम्बद्ध है ऐसा दूसरा पक्ष स्वीकारे तो संयोग सम्बन्ध से सम्बद्ध है, या समवाय सम्बन्ध से अथवा विशेषण भाव सम्बन्ध से सम्बद्ध है ? संयोग सम्बन्ध से सम्बद्ध है ऐसा कहो तो ठीक नहीं, क्योंकि विरोध द्रव्य रूप नहीं है, आपने दो द्रव्यों में संयोगनामा सम्बन्ध माना है । विरोध द्रव्यरूप नहीं होने से संयोग का आश्रय बन नहीं सकता । समवाय सम्बद्ध से विरोध सम्बद्ध होता है ऐसा कहना भी प्रयुक्त है, क्योंकि विरोध द्रव्यरूप नहीं है, और न गुण, कर्म, सामान्य, विशेष इन रूप ही है, अतः प्रसमवायीरूप ही रहेगा ।
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