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माकाशद्रव्यविचारः
२६५ द्रव्यान्तरवदियत्तानवधारणाच्चेत् ; न; वायुनानेकान्तात् । न खलु बिल्वबदरादेरिव वायोरियत्तावधार्यते । वायोरप्रत्यक्षत्वादियत्ता सत्यपि नावधार्यते, न शब्दस्य विपर्ययात्; इत्यप्ययुक्तम् ; गुणगुणिनोः कथञ्चिदेकत्वे गुणप्रतिभासे गुणिनोपि प्रतिभाससम्भवात् । वायुगतस्पर्शविशेषस्यैवाध्यक्षत्वाभ्युपगमे च 'स्पर्शोत्र शीतः खरो वा' इति प्रतीतिः स्यान्न वायुरिति । न खलु रूपावभासिनि प्रत्यये सोव भासते । स्पर्शविशेषपरिणामस्यैव च वायुत्वात्कथं नास्य प्रत्यक्षत्वम् ?
तरह के हेतु से शब्द में अद्रव्यपना सिद्ध करे तो पुनः प्रश्न होता है कि अल्प तथा महत्व परिमाण का अधिकरण नहीं होना भी किस हेतु से सिद्ध होगा ? गुणत्व हेतु द्वारा कहो तो चक्रक दोष का प्रसंग पाता है ।
__ शंका-चक्रक दोष नहीं पायेगा, क्योंकि शब्द अल्प तथा महत्वधर्म का अधिकरण नहीं है इस बात की सिद्धि गुणत्व हेतु द्वारा न करके "द्रव्यांतरवत् इयत्ताअनवधारणात्-अन्य द्रव्य के समान शब्द के परिमाण की इयत्ता (इतना पना) निश्चित नहीं होता इस हेतु द्वारा सिद्धि करते हैं ?
समाधान- यह कथन ठीक नहीं होगा, यह हेतु भी वायु के साथ अनेकान्तिक होता है, इसी को बताते हैं-बेल, बेर प्रादि फलों का परिमाण का जिसतरह “यह इतना छोटा परिमाण वाला है" इत्यादिरूप से निश्चय हो जाया करता है, उसतरह वायु का "यह इतने परिमाण में है" ऐसा अवधारण नहीं हो पाता है, अतः यह नहीं कह सकते कि इतनापनका अवधारण नहीं होने के कारण शब्द गुणरूप पदार्थ है ।
वैशेषिक-वायु नामा पदार्थ अप्रत्यक्ष है अतः उसमें परिमाण की इयत्ता होते हुए भी प्रतीत नहीं हो पाती, किन्तु शब्द के विषय में ऐसी बात नहीं है, शब्द तो प्रत्यक्ष होता है, अत: उसमें यदि परिमाण की इयत्ता होती तो अवश्य ही प्रतीत हो जाती ?
जैन-यह कथन अयुक्त है, आपने यह कहा कि वायु अप्रत्यक्ष है सो बात ठीक नहीं, गुण और गुणी में कथंचित् एकत्व हुआ करता है, अतः जहां गुण प्रतीत हुया वहां गुणी भी प्रतीत होता है, वायु एक गुणी पदार्थ है और उसमें स्पर्श आदि गुण रहते हैं, वायुके स्पर्शका प्रतिभास होता ही है अतः उससे कथंचित् अभिन्न ऐसा वायु गुणी भी प्रतीत हुआ माना जायगा। यदि केवल वायुगत स्पर्श को ही प्रत्यक्ष
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