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प्राकाशद्रव्यविचार:
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वाय्वाद्यभिसम्बन्धात्तदभिघात: किन्त्वन्येन, इत्यनवस्थानं हेतूनाम । गुणत्वेनास्य निर्गुणत्वात्स्पर्शाभावात्तदभिघाताहेतुत्वे चक्रकप्रसंगः-गुणत्वं ह्यद्रव्यत्वे, तदप्यस्पर्शवत्त्वे, तदपि गुणत्वे इति । स्पर्शवतार्थेनाभिहन्यमानत्वाच्च स्पर्शवानसौ । न चानेनाभिहन्यमानत्वमस्यासिद्धम् ; प्रतिवातभित्त्यादिभिः शब्दस्याभिहन्यमानतया सकलजनसाक्षिकत्वात् मूर्तेन चामूर्तस्याविरोधेनाऽप्रतिघाताद् गगनभित्त्यादिवत् । तन्नास्य स्पर्शाश्रयत्वमसिद्धम् ।
धात का निमित्त शब्द सम्बन्ध ही है, इस प्रकार से कर्णाभिघात का कारण शब्द सम्बन्ध सिद्ध होते हुए भी उसे कारण न मानकर अन्य कोई कारण की कल्पना करेंगे तो उस कारण में शंका होवेगी कि शब्द सहचारी वायु से कर्ण का घात हुया है या अन्य कारण से हुआ है ? कोई कह सकता है कि वायु के अभिसम्बन्ध होने से कान का अभिघात नहीं हुअा है किन्तु अन्य ही किसी कारण से हुआ है, फिर उस कारण के विषय में विश्वास नहीं होकर पुनः अन्य कारण की कल्पना होवेगी, इस तरह तो कारणों की अनवस्था सी बन जायगी।
शंका-शब्द स्वयं एक गुण है अत: उसमें स्पर्शनामा गुण नहीं रह सकता, क्योंकि गुण में अन्य गुण नहीं रहते वह निर्गुण होता है, अतः शब्द में स्पर्शनामा गुण है उसके अभिसम्बन्ध से कर्ण का घात होता है ऐसा कहना ठीक नहीं ?
समाधान-यह बात गलत है, इस तरह चक्रक दोष होवेगा, प्रथम तो शब्द को अद्रव्यरूप सिद्ध करना, वह अद्रव्यपना भी अस्पर्शवत्व हेतु से सिद्ध होगा, पुनश्च अस्पर्शवत्व गुणत्व हेतु से सिद्ध होगा और गुणत्व से अद्रव्यपना सिद्ध होगा इस तरह चक्रक दोष पाता है।
___स्पर्श वाले पदार्थ द्वारा अभिहत होने से भी शब्द में स्पर्श गुण का सद्भाव सिद्ध होता है । स्पर्शमान पदार्थ शब्द को अभिहत न करे सो भी बात नहीं है, स्पर्श वाले प्रतिकूल वायु द्वारा दीवाल आदि से शब्द अभिहत होते हुए अनुभव में आते हैं, यह सभी को प्रतीति में आता है। यदि शब्द स्पर्श रहित अमूर्त होता तो मूर्तिक दीवाल आदि से उसका अभिघात नहीं होता, क्योंकि मत्तिक से अमर्त्तका अविरोध होने से उनका परस्पर में अप्रतिघात है, जैसे आकाश और दीवाल का परस्पर में अविरोध होने से अप्रतिघात है अर्थात् मूर्तिक दीवाल और अमूर्त आकाश इनका अविरोध होने से दीवाल द्वारा आकाश अभिहत नहीं होता, वैसे ही शब्द को अमूर्त्त
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