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प्राकाशद्रव्यविचार
२६७ नर्मदानीरे 'अल्पमेतत्' तीव्रवाहिनि च कुल्याजले 'महदेतत्' इति प्रत्यय: स्यात् । न चैवम् । तस्मान्न मन्दतीव्रतानिबन्धनोयं प्रत्ययः, अपि त्वल्पमहत्त्वपरिमाणनिबन्धना, अन्यथा बदरामलकादावपि तन्निबन्धनोसौ न स्यात् । बदरादीनां द्रव्यत्वेन तत्परिमाणसम्भवात्तस्य तन्निबन्धनत्वे शब्देप्यत एवासौ तन्निबन्धनोस्तु विशेषाभावात् । कारणगतस्य चाल्पमहत्त्वपरिमाणस्य शब्दे उपचारात्तथा प्रत्यये बदरादावप्यसौ तथानुषज्येत । तन्नाल्पमहत्त्वपरिमाणाश्रयत्वमप्यस्यासिद्धम् ।
समाधान-यदि ऐसा कहेंगे तो मंद मंद बहने वाले नर्मदा नदी के जल में "यह जल अल्प है" ऐसा ज्ञान होना चाहिए तथा तीव्रता से बहने वाले नहर या छोटी नदी के जल में "यह जल महान है" ऐसा ज्ञान होना था। किन्तु ऐसा ज्ञान नहीं होता इसलिये मानना होगा कि शब्द में अल्प और महानपने का जो प्रतिभास होता है उसका कारण मंदता और तीव्रता नहीं है किन्तु अल्प और महान परिमाण ही है और उसीके कारण वैसा प्रतिभास हुआ करता है। यदि शब्द में इसतरह की व्यवस्था नहीं मानी जाय तो बेर और आंवला आदि वस्तु में भी अल्प और महानपने के परिमाण के कारण वैसी प्रतीति नहीं आकर मंद और तीव्रता के कारण आती है ऐसा स्वीकार करना होगा।
वैशेषिक-बेर, आंवले आदि फल द्रव्यरूप हैं अतः उनमें अल्प और महान परिमाणरूप गुण रहता है और उसके निमित्त से वैसा प्रतिभास भी हो जाता है ।
जैन-तो फिर शब्द में भी ऐसी बात मान लेना चाहिए, उसमें भी अल्प और महान परिमाणरूप गुण रहते हैं और उसके निमित्त से वैसा प्रतिभास होता है ऐसा मानना होगा, कोई विशेषता नहीं है ।
वैशेषिक-शब्द का कारण जो आकाश है उस आकाश द्रव्य के कारण उसके गुण स्वरूप शब्द में भी अल्प तथा महान परिमारण का उपचार होता है और उसके कारण ही अल्प आदि परिमाण की प्रतीति शब्द में भी होती है ।
जैन-ऐसा कहो तो बेर, प्रांवला आदि पदार्थों में भी अल्प एवं महानपने की प्रतीति उपचार से प्रारोपित अल्प आदि गुण से होती है ऐसा मानना पड़ेगा। किंतु इस तरह की बात किसी को भी इष्ट नहीं है इसलिये कहना होगा कि बेर, प्रांवले आदि के समान शब्द में भी अल्प तथा महान परिमाणरूप गुण रहते हैं। इसप्रकार शब्द अल्प महत्व परिमाण के आश्रयभूत है ऐसा जो हेतु दिया था वह प्रसिद्ध नहीं है
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