Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेय कमलमार्तण्डे 'प्रतिषिध्यमानद्रव्यकर्मभावत्वे सति' इति विशेषणम् । 'प्रतिषिध्यमानद्रव्यकर्मभावत्वात्' इत्युच्यमानेपि सामान्यादिना व्यभिचारः, तन्निवृत्त्यर्थं 'सत्तासम्बन्धित्वात्' इत्यभिधानम् । तत्सिद्ध गुणत्वेन क्वचिदाश्रितत्वं शब्दानाम् ।
यश्चैषामाश्रयस्तत्पारिशेष्यादाकाशम् ; तथाहि-न तावत्स्पर्शवतां परमाणूनां विशेषगुणः शब्दोऽस्मदादिप्रत्यक्षत्वात्कार्यद्रव्यरूपादिवत् । नापि कार्यद्रव्याणां पृथिव्यादीनां विशेषगुणोसो; कार्यद्रव्यान्तराप्रादुर्भावेप्युपजायमानत्वात्सुखादिवत्, अकारणगुणपूर्वकत्वादिच्छादिवत्, अयावद्रव्य
जिसमें हो वह गुण है ऐसा कहना बाधित है, क्योंकि द्रव्य तथा कर्मनामा पदार्थ सत्ता सम्बन्धी होकर भी गुणरूप नहीं है, अतः इस दोष को दूर करने के लिए "प्रतिषिध्यमान द्रव्यकर्मभावत्वे सति' इतना वाक्य बढ़ाया है अर्थात् जो द्रव्य तथा कर्म नहीं होकर फिर सत्ता सम्बन्धी पदार्थ है तो वह गुण ही है। प्रतिषिध्यमान द्रव्यकर्मभावत्वात्द्रव्य और कर्मपने का जिसमें प्रतिषेध हो वह गुण है ऐसा कहने मात्र से भी सामान्य
आदि पदार्थों के साथ व्यभिचार आता था अतः "सत्तासम्बन्धित्वात्" इतना पद बढ़ाया गया, अर्थात् जो द्रव्य एवं कर्मरूप भी न हो और सत्तासंयुक्त तो अवश्य हो ऐसा पदार्थ तो गुण ही होता है । इसतरह शब्द गुणरूप ही सिद्ध होते हैं अन्य किसी पदार्थ रूप नहीं, और जब वे गुणरूप ही हैं तो कहीं पर उनका आश्रित रहना अपने आप सिद्ध होता है।
इन शब्दों का जो भी पाश्रयभूत है वह तो पारिशेष्य न्याय से आकाश ही है, अब इसी पारिशेष्य का खुलासा करते हैं—शब्द नामा वस्तु गुण है इतनी बात तो निश्चित हो चुकी है, अब यह देखना है कि वह गुण नौ प्रकार के द्रव्यों में से कौन से द्रव्य में रहता है । पृथिवी, जल, अग्नि तथा वायु इन चार द्रव्यों के जो कारण हैं ऐसे कारण द्रव्य स्वरूप स्पर्शादिमान परमाणुओं का शब्द विशेष गुण है ऐसा कह नहीं सकते, क्योंकि शब्द हम जैसे सामान्य जन के प्रत्यक्ष होता है जैसे कि कार्य द्रव्य के रूपादि गुण प्रत्यक्ष होते हैं, शब्द यदि परमाणुगों का गुण होता तो परमाणु की तरह वह भी हमारे प्रत्यक्ष गम्य नहीं होता। पृथिवी आदि कार्य द्रव्यों का विशेष गण शब्द हो सो भी बात नहीं है, क्योंकि कार्य द्रव्यांतर के उत्पन्न नहीं होने पर भी यह उत्पन्न होता हुअा देखा जाता है, जैसा कि सुखदुःखादिक कार्य द्रव्यांतर की उत्पत्ति के बिना भी उत्पन्न हुआ ही करते हैं । तथा शब्द में इच्छा आदि के समान अकारण गुण
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