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प्रमेयकमलमार्तण्डे जातिभेदेन पृथिव्यादिद्रव्याणां भेदोपवर्णनं चानुपपन्नम् ; स्वरूपासिद्धौ शशशृङ्गवद्भे दोपवर्णनासम्भवात् । जातिभेदेनात्यन्तं तेषां भेदे चान्योन्यमुपादानोपादेयभावो न स्यात् । येषां हि जातिभेदेनात्यन्तिको भेदो न तेषां तद्भाव : यथात्मपृथिव्यादीनाम्, तथा तभेदश्च पृथिव्यादिद्रव्याणामिति । तन्तुपटाद्युपादानोपादेयभावेन व्यभिचारपरिहारार्थम् प्रात्यन्तिकविशेषणम् । न हि तत्रात्यन्तिकस्तद्भदः, पृथिवीत्वादिसामान्यस्याभिन्नस्यापीष्टेः । नन्वेवं द्रव्यत्वादिना पृथिव्यादीनामप्यभेदात्तद्भासे बने हुए पृथिवी आदि अवयवी द्रव्यों को अवयवों से सर्वथा पृथक् मानना इत्यादि बातें सब असत् हैं, क्योंकि सर्वथा नित्य स्वभाव वाले परमाणुषों में अर्थ क्रिया असंभव है, और परमाणुओं के कार्यस्वरूप पृथिवी आदि अवयवी द्रव्य अपने अंश-अवयवों से पृथक् होने के कारण असंभवनीय ही हैं। जब परमाणुरूप कारणों का ही प्रभाव है तो कार्य का होना नितरां असम्भव है, अन्यथा अतिप्रसंग होगा। तथा अपने अवयवों से सर्वथा पथक माने गये अवयवी को ग्रहण करने वाला प्रमाण नहीं होने से भी उसका असत्व सिद्ध होता है। आप वैशेषिक का यह भी हटाग्रह है कि पृथिवी, जल आदि द्रव्यों की जाति सर्वथा पृथक् पृथक् ही है सो बात सिद्ध नहीं होती, जब इन पृथिवी आदि द्रव्यों का स्वरूप ही सिद्ध नहीं कर पाये तो उनके भेद आदि का वर्णन करना तो शश शृगवत् [ खरगोश के सींग के समान ] व्यर्थ है, असंभव है । पृथिवो, जल, अग्नि और वायु इन चारों में यदि सर्वथा जातिभेद मानेंगे तो उनमें परस्पर में उपादान उपादेय भाव बनना शक्य नहीं रहेगा। क्योंकि जिन द्रव्यों में जातिभेद से अत्यंत भेद होता है उनमें उपादान उपादेय भाव नहीं हुआ करता, जैसे कि आत्मा और पृथिवी आदि में जातिभेद होने से उपादान-उपादेय भाव नहीं होता है, आप लोग पृथिवी आदि में जातिभेद मानते हैं अतः उनमें उपादान उपादेयपना होना असंभव ठहरता है। तंतु और वस्त्र इत्यादि पदार्थों में उपादान उपादेय भाव जाति भेद होते हुए भी बनता है ऐसा कोई जैन के हेतु को व्यभिचरित करना चाहे तो इस व्यभिचार का परिहार करने के लिये ही "जिनमें अत्यंत भेद हो" ऐसा विशेषण दिया है मतलब तन्तु और पट आदि में अत्यंत भेद नहीं होता है इसीलिये उनमें उपादान-उपादेय भाव बनता है । किन्तु पृथिवी, जल आदि में तो ऐसा घटित नहीं कर सकते हैं क्योंकि इन चारों द्रव्यों को पाप सर्वथा जाति भिन्न-अत्यन्त भिन्न मानते हैं। तन्तु और वस्त्र में ऐसा अत्यन्त भेद नहीं है, उनमें तो पृथिवीत्व आदि सामान्य की अपेक्षा अभिन्नपना भी माना गया है।
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