Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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परमाणुरूपनित्यद्रव्यविचारः
२२७ कारणकाः तद्भावभावित्वाद् घटविनाशपूर्वककपालवत् । न चेदमसिद्ध साधनम् ; द्वयणुकाद्यवयविद्रव्यविनाशे सत्येव परमाणुसद्भावप्रतीते: । सर्वदा स्वतन्त्रपरमाणूनां तद्विनाशमन्तरेणाप्यत्र सम्भवाद् भागासिद्धो हेतुः; इत्यप्यसुन्दरम् ; तेषामसिद्धः । तथाहि-विवादापन्नाः परमाणव: स्कन्धभेदपूर्वका एव तत्त्वाद् द्वयणुकादिभेदपूर्वकपरमाणुवत् ।
ननु पटोत्तरकालभावितन्तूनां पटभेदपूर्वकत्वेपि पटपूर्वकालभाविनां तेषामतत्पूर्वकत्ववत् परमाणूनामप्यस्कन्धभेदपूर्वकत्वं केषाञ्चित्स्यात्; इत्यप्यनुपपन्नम् ; तेषामपिप्रवेणीभेदपूर्वकत्वेन
होते हुए देखे जाते हैं, जैसे कि घट के विनाशपूर्वक कपाल की उत्पत्ति देखी जाने से कपाल का कारण घट विनाश माना जाता है, यह तद्भाव भावित्व [ स्कन्ध के नाश होने पर होना रूप ] हेतु असिद्ध नहीं है, क्योंकि द्वयणुक आदि अवयवी द्रव्य का विनाश होने पर ही परमाणु का सद्भाव देखने में आता है।
__ वैशेषिक-जो परमाणु सर्वदा स्वतन्त्र हैं अर्थात् अभी तक अवयवी द्रव्यरूप नहीं बने हैं ऐसे परमाणु तो अवयवी द्रव्य का नाश होकर उत्पन्न नहीं हुए ? अतः परमाणु सकारण ही हैं-स्कन्ध का विघटन या नाश होकर ही उत्पन्न होते हैं ऐसा हेतु देना भागासिद्ध होता है। जो हेतु पक्ष के एक देश में रहे वह भागासिद्ध नामा सदोष हेतु कहलाता है, यहां भी कोई परमाणु स्कन्ध विनाशरूप कारण से हुए और कोई बिना कारण के स्वतः सदा से ही परमाणु स्वरूप है अतः स्कन्ध नाश पूर्वक ही परमाणु होते हैं ऐसा कहना गलत ठहरता है ?
जैन-यह कथन असत् है, आप जिस तरह बता रहे वह सिद्ध नहीं होता, इसी का खुलासा करते हैं-विवाद में आये हुए परमाणु नामा पदार्थ सब स्कन्ध का भेद होकर या नाश करके ही हुए हैं, क्योंकि स्कन्ध के भेद होने पर ही उनकी प्रतीति होती है, जैसे द्वयणुक आदि स्कन्ध द्रव्य के भेद पूर्वक होने वाले परमाणु ।
वैशेषिक-पट बनने के बाद जो तन्तु पट से निकाले जाते हैं वे तो पट के भेद से उत्पन्न हुए कहलायेंगे, किन्तु पट बनने के पहले जो तन्तु थे वे तो पट के भेद पूर्वक नहीं हुए हैं, बिलकुल इसी प्रकार से कोई कोई परमाणु स्कन्ध के भेद बिना हुआ करते हैं ?
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