Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अर्थस्य सामान्यविशेषात्मकत्ववादः
१६६ षट्पदार्थव्यतिरिक्तमस्तित्वादीष्यते । ननु सतो ज्ञापकप्रमाणविषयस्य भावः सत्त्वम्-सदुपलम्भकप्रमाणविषयत्वं नाम धर्मान्तरं षण्णामस्तित्वमिष्यते, अतो नानेनानेकान्तः; तदसत् ; षट्पदार्थसंख्याव्याघातानुषङ्गात्, तस्य तेभ्योन्यत्वात् । ननु मिरूपा एव ये भावास्ते षट्पदार्थाः प्रोक्ताः, धर्मरूपास्तु तद्व्यतिरिक्ता इष्टा एव । तथा च पदार्थप्रवेशकग्रन्थ:-"एवं धमै विना धर्मिणामेव निर्देश: कृतः" [ प्रशस्तपादभा० पृ० १५ ] इति ।
अस्त्वेवं तथाप्यस्तित्वादेर्धर्मस्य षट्पदाथै : साधं कः सम्बन्धो येन तत्तेषां धर्मः स्यात्-संयोगः, समवायो वा ? न तावत्संयोगः; अस्य गुणत्वेन द्रव्याश्रयत्वात् । नापि समवायः; तस्यैकत्वेनेष्ट
विषय है यह धर्मान्तरभूत सत्त्व छह पदार्थों का अस्तित्व है, अतः "षण्णां पदार्थानां अस्तित्वं" इत्यादि वाक्य के साथ हमारा कथन अनैकान्तिक नहीं होता, अर्थात् जहां षष्ठी विभक्ति होती है वहां पदार्थों में अत्यन्त भेद सिद्ध होता है ऐसा हमने कहा है वह षष्णां पदार्थानामस्तित्वं इत्यादि वाक्य से व्यभिचरित नहीं है, क्योंकि यहां भी छह पदार्थ और अस्तित्व भिन्न माने हैं अतः षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है ।
जैन-यह कथन अयुक्त है, इसतरह कहोगे तो आपके छह पदार्थों की संख्या का व्याघात होता है, क्योंकि सत्त्व को छह पदार्थों से पृथक् मान लिया।
वैशेषिक-धर्मी स्वरूप जो पदार्थ हैं वे छह ही हैं किन्तु अस्तित्व आदि धर्म रूप पदार्थ तो इन छहों से अतिरिक्त भी स्वीकार किये हैं, पदार्थ प्रवेशक ग्रन्थ में भी कहा है कि "एवं धर्मेंविना मिणां एव निर्देशः कृतः" धर्मों का निर्देष न कर केवल धर्मी पदार्थों का ही निर्देश किया है इत्यादि ।
जैन-ऐसा होवे तथापि अस्तित्वादि धर्म का षट् पदार्थों के साथ कौनसा सम्बन्ध है, जिस सम्बन्ध से वे धर्म उनके कहलाते हैं, संयोग संबंध है या समवाय सम्बन्ध है ? संयोग तो कह नहीं सकते, क्योंकि संयोग को गुण रूप मानकर उसका आश्रय केवल द्रव्यों में बतलाया जाता है । अस्तित्वादि धर्म का पदार्थ रूप धर्मी के साथ समवाय सम्बन्ध है ऐसा दूसरा विकल्प भी उचित नहीं, क्योंकि समवाय को आपने एक रूप माना है, यदि अस्तित्व धर्म का समवाय संबंध से धर्मी में रहना स्वीकार करेंगे तो समवाय अनेक रूप बन जायेंगे । सम्बन्ध के बिना ही पदार्थ और
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