Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अर्थस्य सामान्यविशेषात्मकत्ववादः
२०७
विरोधे धर्मिणि धर्माणां प्रतीतिरेव न स्यात्, न चैवम्, प्रबाधबोधाधिरूढप्रतिभासत्वात्तत्र तेषाम् । वध्यघातकभावोपि विरोध: फणिनकुलयोरिव बलवदबलवतोः प्रतीतः सत्त्वासत्त्वयोर्भेदाभेदयोर्वा नाशङ्कनीयः; तयोः समानबलत्वात् ।
अस्तु वा कश्चिद्विरोध: ; तथाप्यसौ सर्वथा, कथंचिद्वा स्यात् ? न तावत्सवंथा; शीतोष्णस्पर्शादीनामपि सत्त्वादिना विरोधासिद्ध: । एकाधारतया चैकस्मिन्नपि हि धूपदहनादिभाजने क्वचि त्प्रदेशे शीतस्पर्शः क्वचिच्चोष्णस्पर्शः प्रतीयत एव । अथानयोः प्रदेशयोर्भेद एवेष्यते; प्रस्तु नामान
दो धर्मों में होता है कहो तो सिद्ध साधन है, क्योंकि धर्मोंका यही लक्षण है कि परस्पर का परिहार करके रहना, किन्तु इन धर्मों का एक ही वस्तुभूत आधार में रहना विरुद्ध नहीं है, जैसे कि एक ही बिजौरे आदि में रूप रस प्रादि रहते हैं । तथा धर्म र धर्मी में विरोध होता है ऐसा दूसरा पक्ष कहो तो बड़ी भारी आपत्ति प्रावेगी, फिर तो धर्मी में धर्म प्रतीत ही नहीं हो पायेंगे, किन्तु ऐसी बात नहीं है, धर्मी में ही धर्मों की प्रतीति होती हुई अबाधित ज्ञान में प्रतिभासित हो रही है, बध्यघातक नामका तीसरा विरोध भी सर्प और नेवले के समान बलवान और अबलवान में होता है, अर्थात् एक बलवान हो और दूसरा कमजोर हो तो उनमें से बलवान कमजोर को नष्ट करता हुआ प्रतीत होता है और उनमें बध्यघातक विरोध माना जाता है, किन्तु ऐसा विरोध भेद और अभेद, अथवा सत्व और असत्व में नहीं है, क्योंकि वे दोनों समान बलवाले हैं ।
मान लेवें कि भेद प्रभेदादि में कोई विरोध है, किन्तु वह सर्वथा है या कथंचित् है ? सर्वथा कह नहीं सकते, शीत उष्ण आदि विरुद्ध कहलानेवाले स्पर्श भी एक साथ एक जगह सत्वादि की अपेक्षा रहते हुए दिखाई देते हैं, अतः उनमें विरोध सिद्ध नहीं होता, अर्थात् शीत स्पर्श सत्रूप है, उष्ण स्पर्श सत्रूप है, इत्यादि सत् की अपेक्षा दोनों में समानता है तथा शीत और उष्ण एक आधार में भो उपलब्ध होते हैं, एक हो धूपदान में कहीं तो उष्णता है और किसी भाग में शीतता है, यह साक्षात् प्रतीत होता है । अतः इनमें सर्वथा विरोध नहीं मान सकते ।
वैशेषिक - यह धूपदहन का उदाहरण गलत है, यहां अलग-अलग प्रदेश विभाग की अपेक्षा से शीत और उष्ण स्पर्श रहा करते हैं ।
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