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अर्थस्य सामान्य विशेषात्मकत्ववादः
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किञ्च श्रतोऽप्राप्तपटावस्थेभ्यः प्राक्तनावस्थाविशिष्टेभ्यस्तन्तुभ्यः पटस्य भेद: साध्येत, पटावस्थाभाविभ्यो वा ? प्रथमपक्षे सिद्धसाध्यता, पूर्वात्तरावस्थयोः सकलभावानां भेदाभ्युपगमात् । न खलु यैवार्थस्य पूर्वावस्था सैवोत्तरावस्था पूर्वाकारपरित्यागेनैवोत्तराकारोत्पत्तिप्रतीतेः । द्वितीयपक्षे तु हेतूनामसिद्धि : ; न खलु पटावस्थाभावितन्तुभ्य: पटस्य भेदाप्रसिद्धी विरुद्धधर्माध्यासविभिन्नकर्तृकत्वादयो धर्माः सिद्धिमासादयन्ति । कालात्ययापदिष्टत्वं चैतेषाम् ; आतानवितानीभूततन्तुव्यतिरेकेणार्थान्तरभूतस्य पटस्याध्यक्षेणानुपलब्धेस्तेन भेदपक्षस्य बाधितत्वात् ।
( जल, पट, घट ) भी गमक बन जायेगा, फिर एक ही हेतु से सम्पूर्ण साध्यों की सिद्धि हो सकेगी, अन्य-अन्य हेतु को ग्रहण करना व्यर्थ हो जायेगा ।
दूसरी बात यह है कि विरुद्धधर्मता होने से पट और तन्तुओं में भेद सिद्ध करते हैं, सो कौनसे तन्तुनों से पट का भेद सिद्ध करना है, जो ग्रभी पट की अवस्था को प्राप्त नहीं हुए हैं ऐसे पहले की अपनी पृथक्-पृथक् अवस्था वाले तन्तुयों से पट न्यारा है याकि जो पट में अवस्थित हो चुके हैं ऐसे तन्तुओं से पट न्यारा है । यदि पहले पक्ष की बात कहो तो सिद्ध साध्यता है क्योंकि पूर्व अवस्था और उत्तर अवस्था इनमें तो सम्पूर्ण पदार्थं पृथक ही हुआ करते हैं । ऐसा नहीं है कि पदार्थ की जो पूर्व अवस्था है वही उत्तर में होती है, वस्तु अपने पूर्व आकार का त्याग करके ही उत्तर आकार को प्राप्त होती है । पट में स्थित तन्तुओं से पट को पृथक्ता है ऐसा दूसरा पक्ष कहे तो हेतुओं की प्रसिद्धि साक्षात् दिखाई दे रही है । पट में लगे हुए तन्तु पट से भिन्न नहीं हैं वे तो उसी में अभिन्न प्रतीत हो रहे हैं, अतः पट से तन्तुयों को भिन्न सिद्ध करने के लिए दिये गये विरुद्ध धर्माध्यासत्व विभिन्न कर्तृ कत्व यादि हेतु सिद्ध नहीं होते हैं । विरुद्ध धर्माध्यासत्व आदि वैशेषिक कथित हेतु कालात्ययापदिष्ट दोष युक्त भी हैं, क्योंकि इनका पक्ष प्रत्यक्ष बाधित है, अर्थात् पट से तन्तु सर्वथा पृथक् हैं क्योंकि पट महा परिमाण आदि धर्म वाला है और तन्तु अल्प परिमाण ग्रादि धर्मवाले हैं अतः विरुद्ध धर्म होने से ये दोनों पृथक् माने जाते हैं, ऐसा वैशेषिक ने अनुमान कहा किन्तु पट से तन्तु पृथक् दिखायी नहीं देते वे आतान वितानीभूत होकर पटमय ही प्रतीत होते हैं, तन्तुयों का आतान प्रादिरूप सन्निवेश छोड़ अन्य पट नामा पदार्थ दिखायी नहीं देता, अतः विरुद्ध धर्माध्यासत्वादि हेतु सदोषबाधित पक्ष वाले हैं ।
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