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अर्थस्य सामान्यविशेषात्मकत्ववादः
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ननु चार्थस्य सामान्यविशेषात्मकत्वमयुक्तम् । तदात्मकत्वेनास्य ग्राहकप्रमाणाभावात् । सामान्यविशेषाकारयोश्चान्योन्यं प्रतिभासभेदेनात्यन्तं भेदात् । प्रयोगः-सामान्याकारविशेषाकारी परस्परतोऽत्यन्तं भिन्नौ भिन्नप्रमाणग्राह्यत्वाद्घटपटवत् । पटादौ हि भिन्नप्रमाणग्राह्यत्वमत्यन्तभेदे
अब यहां पर पदार्थ के समान्य विशेषात्मक होने में आपत्ति उठाकर उसमें वैशेषिक अपना लम्बा पक्ष उपस्थित करता है
वैशेषिक-जैन ने प्रत्येक पदार्थ को सामान्य विशेषात्मक माना है वह अयुक्त है, क्योंकि पदार्थ उस रूप है ऐसा जानने वाला कोई प्रमाण नहीं है। सामान्य और विशेष इन दोनों का परस्पर में अत्यन्त भिन्न रूप से प्रतिभास होता है, अतः इनमें भेद है। अनुमान प्रमाण से सिद्ध होता है कि सामान्य आकार और विशेष आकार परस्पर में अत्यन्त भिन्न हैं, क्योंकि भिन्न भिन्न प्रमाण द्वारा ग्राह्य हैं, जैसे घट और
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