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प्रमेयकमलमार्तण्डे
व्यवहारे तच्छब्दवाच्यत्वे वा साध्ये केवलव्यतिरेकिरूपं द्रष्टव्यम् । अभेदवतां त्वाकाशकालदिग्द्रव्याणामनादिसिद्धा तच्छब्दवाच्यता द्रष्टव्या।
___ एवं रूपादयश्चतुविशतिगुणाः । उत्क्षेपणादीनि पञ्च कर्माणि । परापरभेदभिन्नं द्विविधं सामान्यम् अनुगतज्ञानकारणम् । नित्य द्रव्यव्यावृ (व्यव) त्तयोऽन्त्या विशेषा अत्यन्तव्यावृत्तिबुद्धिहेतवः । अयुतसिद्धानामाधार्याधारभूतानामिहेदमितिप्रत्ययहेतुर्यः सम्बन्धः स समवायः।
अत्र पदार्थषट्के द्रव्यवद् गुणा अपि केचिन्नित्या एव केचित्त्वनित्या एव । कर्माऽनित्यमेव । सामान्यविशेषसमवायास्तु नित्या एवेति ।
व्यवहृत होता है क्योंकि इसमें पृथिवीत्व का ही सम्बन्ध है, इत्यादि केवल व्यतिरेकी अनुमान लगा लेना चाहिए। आकाश, दिशा और काल इन अभेद वाले द्रव्यों की तो अनादि सिद्ध ही तत् शब्द वाच्यता है अर्थात् इनमें किसी संबंध से नाम निर्देश न होकर स्वयं अनादि से वे उन नामों से कहे जाते हैं।
__इसीतरह द्रव्य के अनन्तर कहा गया जो गुण नामा पदार्थ है उसके चौबीस रूप, रस आदि भेद हैं, उत्क्षेपण आदि कर्म नामा पदार्थ पांच प्रकार का है। पर सामान्य और अपर सामान्य ऐसे सामान्य के दो भेद हैं। यह सामान्य नामा पदार्थ अनुगत प्रत्यय का कारण है। जो नित्य द्रव्यों में रहते हैं, अन्त्य हैं, अत्यन्त पृथक्पने का ज्ञान कराते हैं वे विशेष नामा पदार्थ हैं। अयुत सिद्ध आधार्य और प्राधारभूत वस्तुओं में “यहां पर यह है' इसप्रकार की इह इदं बुद्धि को कराने में जो कारण है उस सम्बन्ध को समवाय नामा पदार्थ कहते हैं। इन छह पदार्थों में से जो द्रव्य नामा पदार्थ है उसमें रहनेवाले गुण होते हैं वे कोई तो नित्य ही हैं और कोई अनित्य ही हैं। कर्म नामा पदार्थ सर्वथा अनित्य ही है। सामान्य, विशेष एवं समवाय ये तीनों सर्वथा नित्य ही हैं। इसप्रकार हम वैशेषिक के यहां प्रमाण ग्राह्य पदार्थों की व्यवस्थिति है।
जैन-अब यहां पर वैशेषिक के मन्तव्य का निरसन किया जाता है, अनेक धर्मात्मक वस्तु को ग्रहण करनेवाला कोई प्रमाण नहीं है, ऐसा आपने कहा किन्तु यह प्रसिद्ध है, प्रमाण से सिद्ध करते हैं कि अनेक धर्मात्मक पदार्थ ही वास्तविक है क्योंकि
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