Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेय कमल मार्त्तण्डै
मारणेतिप्रसङ्गः इत्यनर्थानल्पकल्पनाभयात् स्वकार्यकारणदुपरमते । चित्रज्ञानादावपि चैतत्सवं समानम् । प्रतिक्षिप्तं च प्रतिक्षणं क्षणिकत्वं प्रागित्यलमतिप्रसंगेन ।
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अथेदानीं व्यतिरेकलक्षणं विशेषं व्याचिख्यासुरर्थान्तरेत्याह
श्रर्थान्तरगतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेकः गोमहिषादिवत् ॥ १० ॥
एकस्मादर्थात्सजातीयो विजातीयो वार्थोऽर्थान्तरम्, तद्गतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेको गोमहिषादिवत् । यथा गोषु खण्डमुण्डादिलक्षणो विसदृश परिणामः, महिषेषु विशालविसङ्कटत्वलक्षणः,
महावत को भी मारना चाहिए और यदि दूरवर्ती को मारता है तो उसे सबको ही मारना चाहिए इत्यादि बहुत प्रकार के व्यर्थ के प्रश्न एवं कल्पना होने के प्रसंग आते हैं अतः द्रव्य और पर्याय के विषय में व्यर्थ के प्रश्न नहीं करने चाहिए, मत्त हाथी तो अपना कार्य करने में चूकता नहीं, कोई चाहे जितने प्रश्न उठा लो, वैसे ही द्रव्य और पर्याय कथंचित् भेदाभेद रूप प्रतीति सिद्ध है, इनके विषय में बौद्ध चाहे जितने प्रश्न उठा लेवे, किन्तु इस वस्तु स्वरूप का अपलाप नहीं कर सकते । बौद्ध के चित्र ज्ञान में भी द्रव्य पर्याय के समान प्रश्न कर सकते हैं कि चित्र ज्ञान नील पोत आदि आकारों से सर्वात्मना अभिन्न है तो उनका विभिन्न प्रतिभास नहीं होना चाहिए इत्यादि, अतः प्रतीति के अनुसार ही वस्तु स्वरूप को स्वीकार करना होगा । श्रात्मा आदि पदार्थ प्रतिक्षण विनष्ट होते हैं इस सिद्धान्त का पहले खण्डन कर चुके हैं अतः यहां अधिक नहीं कहते हैं ।
इसप्रकार यहां तक विशेष का प्रथम भेद पर्यायविशेष का विवेचन किया प्रसंगोपात्त आत्मा का अन्वयीपना अर्थात् आत्मद्रव्य कथंचित् द्रव्यदृष्टि से अपनी सुखादि पर्यायों से भिन्न है और कथंचित् पर्यायदृष्टि से भिन्न भी है ऐसा सिद्ध किया, अब विशेष का द्वितीय भेद व्यतिरेक विशेष का व्याख्यान करते हैं
अर्थांतरगतो विसदृशपरिणामोव्यतिरेको गो महिषादिवत् ||१०||
सूत्रार्थ - विभिन्न पदार्थों में होने वाले विसदृश परिणाम को व्यतिरेक विशेष कहते है, जैसे गाय, भैंस आदि में होने वाली विसदृशता विशेष कहलाती है उसीको व्यतिरेक विशेष कहते हैं ।
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