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प्रमेयकमलमार्तण्डे तर्कसहायेन वाऽनियते प्रसिद्धा। एकमेव च प्रत्यक्षं प्रत्यक्षानुपलम्भशब्दाभिधेयम् । तद्धि कार्यकारणभावाभिमतार्थविषय प्रत्यक्षम्, तद्विविक्तान्यवस्तुविषयमनुपलम्भ शब्दाभिधेयम् । तथाहि-एतावद्भिः प्रकारै— मोग्निजन्यो न स्यात्-यदि अग्निसन्निधानात्प्रागपि तत्र देशे स्यात्, अन्यतो वाऽऽगच्छेत्, तदन्यहेतुको वा भवेत् । एतच्च सर्वमनुपलम्भपुरस्सरेण प्रत्यक्षेण प्रत्याख्यातम् ।
एतेन प्रागनुपलब्धस्य रासभस्य कुम्भकारसन्निधानानन्तरमुपलभ्यमानस्य तस्य तत्कायंता स्यादिति प्रतिव्यूढम् ; यदि हि तस्य तत्र प्रागसत्त्वमन्यदेशादनागमन्याहेतुकत्वं च निश्चेतु शक्येत
अथवा तर्क प्रमाण की है सहायता जिसमें ऐसे उस आत्मा द्वारा अनियत अर्थात् सर्वत्र स्थान पर उस कार्य कारण भाव संबंध का ज्ञान होता है। कार्य कारण भाव का ज्ञान प्रत्यक्ष और अनुपलंभ प्रमाण द्वारा होता है ऐसा जो कहा उसमें "प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ" इन दोनों शब्दों का वाच्य एक ही प्रत्यक्ष रूप है, धूम और अग्नि आदि कार्यकारण रूप माने गये पदार्थ को विषय करने वाले ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं और इन धम आदि से पृथक् भूत जो महाह्रदादि पदार्थ हैं उसको विषय करनेवाले ज्ञान को अनुपलंभ शब्द से कहते हैं। इसी का खुलासा करते हैं--इतने प्रकार के प्रमाणों द्वारा धूम अग्नि जन्य नहीं है अर्थात् यदि अग्नि के सानिध्य के पहले भी उस स्थान पर (पर्वतादि में ) धूम होवे, अथवा अन्य स्थान से आता होवे तो उस धूम को अन्य हेतुक अर्थात् अग्नि को छोड़कर किसी अन्य कारण से जन्य ऐसा सिद्ध होता। किन्तु यह सब अनुपलम्भ युक्त प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा बाधित होता है अर्थात् युक्त प्रत्यक्ष द्वारा धूम का अग्नि रूप कारण से उत्पन्न होना हो सिद्ध होता है। अतः कार्य कारण सम्बन्ध प्रत्यक्षादि प्रमाण से ज्ञात होना सिद्ध है ।
यदि बौद्ध कहे कि "जिसके होनेपर जो उत्पन्न होता है वह उसका कारण है" ऐसा माना जाय तो पहले जो उपलब्ध नहीं है और कुम्हार के सन्निधि में उपलब्ध हो जाता है ऐसा रासभ ( गधा ) कुम्हार का कार्य कहलायेगा और कुम्हार उसका कारण माना जायेगा ? सो ऐसी बात नहीं है, गधा यदि कुम्हार के स्थान पर कुम्हार आने के पहले असत् रहता, तथा अन्य स्थान से नहीं आता, एवं अन्य हेतुक नहीं होता, इतनी सारी बात निश्चित कर सकते तब तो "गधा कुम्हार का कार्य है" ऐसा कह सकते थे किन्तु ऐसा नहीं है अतः गधा और कुम्हार का उदाहरण देकर कार्य
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