________________
१२४
प्रमेयकमलमार्तण्डे
काल में प्रतीत अनागतत्व स्वतः रहता है और वस्तु की पर्यायों में अतीतादित्व काल के निमित्त से आता है ऐसी ही वस्तु व्यवस्था है ।।
घटादि का विनाश लाठी आदि के व्यापार के बाद देखा जाता है अत: विनाश को निर्हेतुक नहीं कह सकते । लाठी का व्यापार कपाल की उत्पत्ति में निमित्त होता है ऐसा भी नहीं कहना । क्योंकि कपाल की उत्पत्ति में लाठी सहायक है तो उससे घट का तो कुछ बिगड़ा नहीं वह लाठी मारने पर भी जैसा का तैसा दिखाई देना चाहिये । बौद्धमतानुसार यदि नाश स्वतः होता है तो नाश के कारण उपस्थित होने पर जो सुख दुःखादिका अनुभव होता है वह नहीं होना चाहिये । अर्थात् लाठी आदि के व्यापार के अनंतर घट का इच्छुक पुरुष दुःखी होता है और कपाल का इच्छूक सुखी होता है एवं इन दोनों कार्यों को नहीं चाहने वाला व्यक्ति मध्यस्थ रहता है सो यह बात क्यों होती ।
अतः नाश का कारण जरूर है यह सिद्ध होता है । हम जैन बौद्ध को पूछते हैं कि जैसे पाप नाश को स्वतः होना मानते हैं वैसे उत्पाद को स्वतः होना मानना चाहिये । किन्तु आप उत्पाद को सहेतुक मानते हैं । सत्व हेतु से वस्तु का क्षणिकत्वं सिद्ध करना भी शक्य नहीं है । क्योंकि सत्व का क्षणिकत्व के साथ अविनाभाव नहीं है । बिजलो में सत्व और क्षणिकत्व का अविनाभाव प्रत्यक्ष से दिखता है ऐसा कहना भी अशक्य है। हम जैन बिजली का भी निरन्वय नाश नहीं मानते "भवान्तर स्वभावत्वात् अभावस्य" यह सुप्रसिद्ध न्याय है । नित्य वस्तु में सत्व नहीं है इस बात को, कौनसा प्रमाण पुष्ट करता है ? आपके यहां प्रत्यक्ष निर्विकल्प है अत: नित्य हो चाहे क्षणिक दोनों को भी जान नहीं सकता । अनुमान प्रमाण भी क्षणिकत्व को विषय नहीं करेगा, उसके लिये अविनाभावी हेतु चाहिये, आप सत्व हेतु का क्षणिकत्व के साथ अविनाभाव करके अनुमान करते हैं किन्तु सत्व और क्षणिकत्व का अविनाभाव का नहीं है यह बात कह चुके हैं । अर्थ क्रिया कारित्व हेतु भी क्षणिकत्व को पुष्ट न करके नित्य को ही पुष्ट करेगा अर्थात् क्षणिक वस्तु में क्रम या युगपत अर्थ क्रिया का होना शक्य नहीं है । जैन प्रत्येक पदार्थ को कथंचित् नित्य मानते हैं अतः उसीमें अर्थ क्रिया संभव है । यदि वस्तु क्षणिक है तो वह नष्ट होकर कार्य को पैदा करेगो कि अविनष्ट होकर ? नष्ट होकर कहो तो ठीक नहीं क्योंकि जैसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org