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सम्बन्धसद्भाववादः
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किञ्च, असौ सम्बन्ध : सम्बन्धिभ्यां भिन्न:, अभिन्नो वा ? यद्यभिन्नः; तदा सम्बन्धिनावेव न सम्बन्धः कश्चित्, स एव वा न ताविति । भिन्नश्चेत् ; सम्बन्धिनो केवलो कथं सम्बधौ (खौ) स्याताम् ?
भवतु वा सम्बन्धोर्थान्तरम् ; तथापि तेनैकेन सम्बन्धेन सह द्वयोः सम्बन्धिनोः कः सम्बन्धः? यथा सम्बन्धिनोर्यथोक्तदोषान्न कश्चित्सम्बन्धस्तथात्रापि तेनानयोः सम्बन्धान्तराभ्युपगमे चानवस्था स्यात्तत्रापि सम्बन्धान्त रानुषङ्गात् । तन्न सम्बन्धिनोः सम्बन्धबुद्धिर्वास्तवी तव्यतिरेकेणान्यस्य सम्बन्धस्यासम्भवात् । तदुक्तम्
. "द्वयोरेकाभिसम्बन्धात्सम्बन्धो यदि तद्वयोः ।
कः सम्बन्धोनवस्था च न सम्बन्धमतिस्तथा ।।४।। तत:
तौ च भावौ तदन्यश्च सर्वे ते स्वात्मनि स्थिताः । इत्यमिश्राः स्वयं भावास्तान् मिश्रयति कल्पना ।।५।।
[सम्बन्धपरी०]
दूसरी बात यह है कि यह संबंध अपने दो संबंधियों से भिन्न है कि अभिन्न ? यदि अभिन्न है तो मात्र दो संबंधी ही रहेंगे, सम्बंध नहीं रहेगा, अथवा अकेला संबंध ही रह सकेगा, सम्बंधी पदार्थ नहीं रह सकेंगे। दो सम्बंधियों से सम्बंध भिन्न माने तो अकेले सम्बंधी किस प्रकार परस्पर में सम्बद्ध हो सकेंगे ? सम्बंध तो न्यारा है।
___ मान भी लेवें कि सम्बंध भिन्न रहता है, तथापि उस एक सम्बंध के साथ दोनों सम्बंधियों का कौनसा सम्बंध है ? जिस प्रकार दो सम्बंधियों में पूर्वोक्त दोष होने से कोई सम्बंध सिद्ध नहीं हो पाता है उसीप्रकार सम्बंध के साथ सम्बंधियों का सम्बंध मानने में वे ही दोष आने से कोई सम्बंध सिद्ध नहीं होता है। संबंध के साथ संबंधियों का संबंध कराने हेतु अन्य सम्बंध को कल्पना करे तो अनवस्था होगी, क्योंकि वहां भी सम्बंधांतर की आवश्यकता रहेगी, अतः सम्बंधियों में सम्बंध का जो प्रतिभास होता है वह सत्य नहीं है, क्योंकि सम्बंधियों को छोड़कर अन्य कोई सम्बंध नामा पदार्थ नहीं है। कहा भी है - दो सम्बंधियों में एक सम्बंध से सम्बंध होता है वह सम्बंध भी उनमें किससे सम्बद्ध है ? अन्य किसी सम्बद्ध से है तो अनवस्था आती है अतः सम्बंधि पदार्थों में सम्बंध का जो प्रतिभास होता है वह असत् है ॥४॥
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