Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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सम्बन्धसद्भाववादा
सत्सम्बन्धकल्पनया ? भेदाच्चेत् 'भावे हि भावोऽभावे चाभावः' इति बहवोभिधेयाः कथं कार्यकारणतेत्येकार्थाभिधायिना शब्देनोच्यन्ते ? नन्वयं शब्दो नियोक्तारं समाश्रितः । नियोक्ता हि यं शब्दं यथा प्रयुङ क्ते तथा प्राह, इत्यनेकत्राप्येका श्र तिर्न विरुध्यते इति तावेव कार्यकारणता ।
__ यस्मात् पश्यन्नेक कारणाभिमतमुपलब्धिलक्षणप्राप्तस्याऽदृष्टस्य कार्याख्यस्य दर्शने सति तददर्शने च सत्यऽपश्यत्कार्यमन्वेति 'इदमतो भवति' इति प्रतिपद्यते जनः 'प्रत इदं जातम्' इत्याख्यातृभिविनापि । तस्माद्दर्शनादर्शने-विषयिणि विषयोपचारात्-भावाभावी मुक्त्वा कार्यबुद्धरसम्भवात् कार्यादिश्रु तिरप्यत्र भावाभावयोर्मा लोकः प्रतिपदमियती शब्दमालामभिदध्यात् इति व्यवहारलाघवार्थं निवेशितेति ।
है, अर्थात् "होने पर होना और न होने पर नहीं होना" इस विशेषण रूप वाक्य के बहुत अर्थ हुआ करते हैं, उन सब अर्थों को कार्य कारणता रूप एक मात्र अर्थ को कहने वाले शब्द द्वारा कैसे कहा जा सकता है ? सो इस परवादी के प्रश्न का उत्तर यह है कि कौन से अर्थ को कितने अर्थों को शब्द कह रहा है यह काम तो शब्द का प्रयोग करने वाले व्यक्ति के अधीन है, शब्द का प्रयोक्ता जिस शब्द को जिसप्रकार से प्रयोग में लाता है उसी एक वा अनेक अर्थों को वह शब्द कहने वाला बन जाता है, अतः अनेक अर्थों में भी एक शब्द का प्रयुक्त होना विरुद्ध नहीं पड़ता है । इसप्रकार किसी एक के होने पर होना और न होने पर नहीं होना रूप भाव अभाव ही कार्य कारणपना है ऐसा सिद्ध होता है ।
___ कारणपने से माने गये कोई एक पदार्थ को देखते हुए जो "कारण के पहले अदृष्ट रहता है और उपलब्ध स्वभाववाला है "ऐसे कार्य की खोज मनुष्य किया करता है जिसका कि दर्शन और प्रदर्शन होता है, अर्थात् कारण जब दिखता है तब कार्य नहीं दिखता है और जब कार्य दिखता है तब कारण मौजूद नहीं रहने से दिखायी नहीं देता है, सो इस कारण कार्यता को बताने वाले व्यक्तियों के नहीं होने पर भी अपने आप ही मनुष्य समझ जाते हैं कि यह कार्य इस कारण से होता है" इसलिये कारण और कार्य में से किसी एक का दर्शन और एक का प्रदर्शन जिसमें है उस विषयी ज्ञान में विषय का उपचार होकर "इसके होने पर होता है और नहीं होने पर नहीं होता" ऐसी कार्य बुद्धि होती है, सो यह कार्य बुद्धि अर्थात् कार्य का ज्ञान भाव अभाव को छोड़कर नहीं होता है, कार्य आदि शब्द जो प्रयुक्त होते हैं वे
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