Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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संबंधसद्भाववादः
१४७ प्रतिबन्धसिद्धिरित्यभिधीयते; तदप्य भिधानमात्रम् ; यथैव हीन्धनादेरेकदा समुद्भूतोप्यग्नि: अन्यदारणिनिर्मथनात् मण्यादेर्वा भवन्नुपलभ्यते, धूमो वाग्नितो जायमानोपि गोपालघटिकादौ पावकोद्भूतधूमादप्युपजायते, तथा 'अग्न्यभावेपि कदाचिद्धमो भविष्यति' इति कुतः प्रतिबन्धसिद्धि : ? अथ 'यादृशोग्निरिन्धनादिसामग्रीतो जायमानो दृष्टो न तादृशोऽरणितो मण्यादेर्वा । धूमोपि यादृशोग्नितो न तादृशो गोपालघटिकादौ वह्निप्रभवधूमात्, अन्यादृशात्तादृशभावेतिप्रसंगात् इति नाग्निजन्यधमस्य तत्सदृशस्य चानग्नेर्भावः । भावे वा तादृशधूमजनकस्याग्निस्वभावतैव इति न व्यभिचारः । तदुक्तम् -
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महानसादि में अग्नि से धम निकलता हुआ देखा जाता है, अतः मालूम होता है कि बिना अग्नि के धूम का सद्भाव नहीं हो सकता, इसप्रकार कार्य कारण का अविनाभाव सिद्ध होता है ?
समाधान-यह भी कथन मात्र है, जिसप्रकार किसी एक समय ईन्धनादि से अग्नि उत्पन्न होती देखी जाती है, वैसे अन्य समय में कभी अरणि मथन से या कभी मणि मन्त्रादि से भी अग्नि उत्पन्न होती है, ठीक इसीप्रकार धूम अग्नि से उत्पन्न होता हआ कहीं दिखाई देने पर भी कहीं गोपाल घटिका ( इन्द्रजालियों के घड़े में ) अादि में अग्नि जन्य धूम से भी धूम की उत्पत्ति देखी जाती है, इसतरह के धूम को देखे तो मालूम पड़ता है कि कदाचित् अग्नि के अभाव में भी धम होता है, फिर किससे धम और अग्नि में कार्य कारण का अविनाभाव सिद्ध करे ? अर्थात् नहीं कर सकते ।
शंका -जिसप्रकार की ईन्धनादि से पैदा हुई अग्नि होती है उसप्रकार की अरणि या मणि आदि से उत्पन्न हुई अग्नि नहीं हुआ करती, ऐसा अग्नि में भेद माना जाता है, इसोतरह अग्नि से पैदा हुआ धूम जैसा होता है वैसा गोपाल घटिकादि में अग्नि से जन्य धूमके निमित्त से निकलने वाला धूम नहीं होता है, अतः धमों में भी विभिन्नता स्वीकार करनी होगी, यदि अन्य प्रकार के धूम को भी वैसा ही धम माना जायगा तो अतिप्रसंग आता है, अतः जो साक्षात् अग्नि जन्य धूम है उसकी गोपाल घटिका के धूम के समानता नहीं हो सकती। यदि धूमों में समानता है तो उनमें अग्नि स्वभावता ही सिद्ध होगी। इसप्रकार धूम और अग्नि में कार्य कारण संबंध का कोई भी व्यभिचार नहीं है, ऐसा निश्चित हुआ, कहा भी है-गोपाल घटिका में धम दिखाई देता है वह यदि अग्निस्वभाव वाला मानें तो वहां अग्नि है ही, और
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