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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
भिन्ने का घटना भिन्ने कार्यकारणतापि का ।
भावे ह्यन्यस्य विश्लिष्टी श्लिष्टो स्यातां कथं च तौ ॥ १८ ॥
संयोगिसमवाय्यादि सर्वमेतेन चिन्तितम् । अन्योन्यानुपकाराच्च न सम्बन्धी च तादृशः ।। १६ ।।
जननेपि हि कार्यस्य केनचित्समवायिना । समवायी तदा नासौ न ततोतिप्रसंगतः ||२०||
तयोरनुपकारेपि समवाये परत्र वा ।
सम्बन्धो यदि विश्वं स्यात्समवायि परस्परम् ||२१||
संबंध वादी से हम बौद्ध पूछते हैं कि कारण और कार्यरूप पदार्थ को छोड़कर अन्य संबंध नामा क्या चीज है ? यदि इस संबंध को उनसे भिन्न बतलायेंगे तो वह संबंध ही नहीं कहलायेगा, एवं अभिन्न कहें तो वे एकमेक हुए, उसमें काहे का संबंध ? विभिन्न दो पदार्थों में विभिन्न संबंध किस प्रकार संबन्ध स्थापित कर सकता है ।। १८ ।।
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जैसे यह कार्य कारण संबंध सिद्ध नहीं होता है वैसे समवाय संबंध, संयोग संबन्ध या संयोगी पदार्थ, समवायी पदार्थ आदि भी सिद्ध नहीं होते ऐसा समझना चाहिये । क्योंकि संयोगी आदि पदार्थों में परस्पर उपकारपना तो है नहीं, जिससे वैसा संबंधी सिद्ध हो ॥१६॥
समवायी द्वारा कार्य को उत्पन्न किया जाता है ऐसा कहे तो भी ठीक नहीं, क्योंकि कार्य निष्पत्ति के समय समवायी पदार्थ नष्ट हो चुकता है, नष्ट हुए को समवायी माना जाय तो प्रति प्रसंग आता है ||२०||
समवायीरूप दो पदार्थ एवं समवाय ये सब परस्पर पृथक् हैं, इनका उपकारभाव बनता नहीं, अनुपकार नित्य पृथक् ऐसे समवाय से यदि संबन्ध होना मानें तो विश्व के सम्पूर्ण पदार्थ परस्पर के समवायी कहलाने लगेंगे ।।२१।।
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