Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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बौद्ध के क्षणभंगवाद के निरसन का सारांश
बौद्ध पदार्थ को क्षणिक मानते हैं, उनके यहां वस्तु के क्षणिकत्व को सिद्ध करने के लिये तीन हेतु दिये जाते हैं अर्थ क्रियाकारित्व, सत्व और कृतत्व किन्तु इनसे क्षणिकत्व सिद्ध नहीं होता है । प्रत्येक पदार्थ प्रत्यक्ष से ही अन्वयरूप प्रतीत होता है । त्रिकाल में रहने वाली स्थिति क्षणिक बुद्धि द्वारा गम्य नहीं होती, किन्तु जानने वाला आत्मा नित्य है वह प्रत्यक्ष बुद्धि प्रत्यभिज्ञान इत्यादि की सहायता से पदार्थों को उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप हो ग्रहण करता है । जिसप्रकार कि घट के उत्पाद व्यय प्रतीत होते हैं सो उन्हींके साथ उनकी मिट्टी रूप स्थिति भी प्रत्यक्ष से ही दिखाई देती है।
___ दूसरी बात यह भी है कि द्रव्य के ग्रहण करने पर उसकी प्रतीतादि सभी पर्यायें ग्रहण हो ही जाय ऐसा कोई नियम नहीं, बौद्ध कहते हैं कि द्रव्य से अतीतादि अवस्था अभिन्न हैं अतः द्रव्य के साथ उनका भी ग्रहण हो जाना चाहिये सो ऐसा मानने पर तो ज्ञान द्वारा पदार्थों का अनुभव करते समय जैसे उनसे अभिन्न चेतनत्वादि प्रतीत होते हैं वैसे ही उन्हींके साथ अभिन्न रहने वाले जो स्वर्ग प्रापणत्वादि धर्म हैं वे सब प्रतीत होने चाहिये क्योंकि वे धर्म उन ज्ञानादि से अभिन्न हैं, किन्तु ऐसा आपने माना नहीं और ऐसा है भी नहीं अतः अभिन्न होने से अतीतादि अवस्था द्रव्य के ग्रहण होते ही ग्रहण में आ ही जाय ऐसा नियम नहीं बन सकता।
पदार्थ की स्थास्नुता अर्थात् ठहरने का स्वभाव रूप जो नित्यता है वह तीन काल की अपेक्षा से होती है अतः तीनों कालों को जाने बिना नित्यता कैसी जाने ऐसा प्रश्न है वह गलत है क्योंकि पदार्थ की नित्यता तीन काल की अपेक्षा से न होकर स्वभाव से ही है । पदार्थ की अतीत पर्याय भविष्यत पर्याय ऐसा जो नाम है वह काल के निमित्त से है सो काल में अतीतपना किससे है ऐसी शंका करना भी ठीक नहीं है,
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