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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
किञ्च ब्रह्मणो ब्राह्मण्यमस्ति वा न वा ? नास्ति चेत्; कथमतो ब्राह्मणोत्पत्तिः ? न मनुष्यादिभ्यो मनुष्याद्युत्पत्तिघंटते । अस्ति चेत्किं सर्वत्र, मुखप्रदेश एव वा ? सर्वत्र इति चेत्; स एव प्रजानां भेदाभावोनुषज्यते । मुखप्रदेशे एव चेत्; अन्यत्र प्रदेशे तस्य शूद्रत्वानुषङ्गः, तथा च न पादादयोस्य वन्द्या वृषलादिवत्, मुखमेव हि विप्रोत्पत्तिस्थानं वन्द्यं स्यात् ।
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जाति नहीं है ऐसा आचार्य का कहना है । माता पिता की अभ्रान्तता ब्राह्मण रूप उपाधिका निमित्त है ऐसा प्रथम विकल्प जैसे सिद्ध नहीं हुआ वैसे ही ब्रह्मा से उत्पन्न होना रूप ही ब्राह्मणत्व उपाधि का निमित्त है ऐसा कहना भी सिद्ध नहीं होता है, अब इसी का खुलासा करते हैं- - आप सभी जीवों की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानते हैं अतः जो ब्रह्मा से उत्पन्न हुना हो वह ब्राह्मण है ऐसा कह नहीं सकते, यदि कहेंगे तो सभी मनुष्यों को ब्राह्मण मानना होगा ।
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शंका - जो ब्रह्माजी के मुख से उत्पन्न हुआ हो वह ब्राह्मण शब्द का वाच्य होता है अन्य पुरुष नहीं ?
समाधान - सर्व प्रजा जब ब्रह्मा से उत्पन्न हुई है तब उसमें ऐसा भेद होना बनता नहीं । एक वृक्ष से उत्पन्न हुआ फल है उसमें यह भेद नहीं होता है कि मूल हुआ है कि मध्य में अथवा शाखा में हुआ है ।
मीमांसक- - ऐसी बात नहीं है, नागवेल के पत्ते अलग-अलग मूल मध्य आदि भागों में उत्पन्न होने से उनमें कण्ठ भ्रम करना आदि पृथक् पृथक् शक्ति भेद देखा जाता है, अर्थात् मूल भाग में उत्पन्न हुए नागवेल के पत्ते कण्ठ में भ्रम-घरघराट उत्पन्न कराने वाले होते हैं और मध्य भाग में उत्पन्न हुए पत्ते कण्ठ को सुस्वर बना देते हैं, ठीक इसी प्रकार ब्रह्मा से सब जीव उत्पन्न होते हुए भी जो मुख से उत्पन्न हुए हैं उन्हीं में ब्राह्मण्य जाति प्रगट होती है अन्य में नहीं अतः प्रजा भेद सिद्ध ही होता है ?
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जैन - यह कथन असत् है, नागवेल के पत्ते जघन्य उत्कृष्ट आदि प्रदेशों से उत्पन्न होते हैं अतः उनमें पृथक् पृथक् कण्ठ भ्रम आदि भेद पाया जाना शक्य है, किन्तु ब्रह्माजी में तो वह प्रदेश भेद नहीं है अतः देश भेद से मनुष्यों में ब्राह्मणत्वादि का भेद होना संभव नहीं है, यदि देश भेद मानोगे तो ब्रह्मा के जघन्यपना, उत्कृष्टपना प्रादि भी मानना होगा ।
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