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क्षणभंगवादः
किं पुनरूर्ध्वता सामान्य मित्याह
परापरविवर्त्तव्यापि द्रव्यमूर्ध्वता मृदिव स्थासादिषु ||६||
सामान्य मित्यभिसम्बन्धः । तदेवोदाहरणद्वारेरण स्पष्टयतिमृदिव स्थासादिषु ।
सामान्य का दूसरा भेद ऊर्ध्वता सामान्य है अब उसका लक्षण क्या है ऐसा प्रश्न होने पर सूत्र द्वारा उसका अबाधित लक्षण प्रस्तुत करते हैं -
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परापर विवर्त्त व्यापि द्रव्य मूर्ध्वता मृदिव स्थासादिषु ||६||
सूत्रार्थ - पूर्व और उत्तर पर्यायों में व्याप्त होकर रहने वाला द्रव्य ऊर्ध्वता सामान्य कहलाता है, जैसे स्थास, कोश, कुशल, घट आदि पर्यायों में मिट्टी नामा द्रव्य पाया जाता है वह अन्वयी द्रव्य ही ऊर्ध्वता सामान्य है ।
भावार्थ - सामान्य के दो भेद हैं तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य । अनेक द्रव्यों में जो सदृशता पायी जाती है वह तिर्यक् सामान्य कहलाता है, जैसे अनेक गायों में गोपना सदृश है । एक ही द्रव्य की पूर्व एवं उत्तरवर्ती जो अवस्था हुआ करती हैं, उन पर्यायों में द्रव्य रहता हुआ चला आता है वह द्रव्य ही ऊर्ध्वता सामान्य
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