Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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क्षणभंगवादः
८५ यथाविधार्थाध्यवसायो विकल्पस्तथाविधार्थस्यवानुभवो ग्राहकोभ्युपगन्तव्यः । न चार्थस्य प्रति [क्षण] विनाशित्वात्तत्सामर्थ्य बलोद्भूतेनाध्यक्षेणापि तद्रूपमेवानुकरणीय मिति वाच्यम् ; इतरेतराश्रयानुषङ्गात्-सिद्धे हि क्षणक्षयित्वेऽर्थानां तत्सामर्थ्याविनाभाविनोध्यक्षस्य तद्रूपानुकरण सिद्धयति; तत्सिद्धौ •च क्षणक्षयित्वं तेषां सिध्यतीति ।
नाप्यनुमानं तद्ग्राहक म् ; तत्र प्रत्यक्षाप्रवृत्तावनुमानस्याप्रवृत्त: । तथा हि-अध्यक्षाधिगतम विनाभावमाश्रित्य पक्षधर्मतावगमबलादनुमानमुदयमासादयति । प्रत्यक्षाविषये तु स्वर्गादाविवानुमानस्याप्रवृत्तिरेव ।
में वह प्रमाणभूत माना है" इत्यादि कथन विरुद्ध पड़ेगा ? क्योंकि इस कथन से तो । यह सिद्ध होता है कि वस्तु जैसी है वैसा ही उसमें निश्चय होता है। इस अति प्रसंग
को दूर करने के लिये जिस प्रकार का पदार्थ का निश्चायक विकल्प होता है उसी प्रकार के पदार्थ का ग्राहक अनुभव होता है ऐसा स्वीकार करना चाहिये।
बौद्ध - प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण विनाशशील है अतः उस पदार्थ के सामर्थ्य के बल से उत्पन्न होने वाला जो प्रत्यक्ष है वह उसके रूप का ही अनुकरण करेगा मतलब प्रत्यक्ष प्रमाण पदार्थ से उत्पन्न होता है अतः उसीके आकार वाला होना जरूरी है और इसीलिये उस तरह के [क्षणिकत्व के ] अनुभव का ग्राहक प्रमाण होता है ?
जैन-ऐसा मानने से अन्योन्याश्रय दोष आवेगा-पदार्थों का क्षणिकपना सिद्ध होने पर तो उसके सामर्थ्य का अविनाभावी प्रत्यक्ष का तद् रूप अनुकरण सिद्ध होगा, और उसके सिद्ध होने पर पदार्थों का क्षणक्षयीपना सिद्ध होगा, इस तरह दोनों प्रसिद्ध ही रहेंगे।
पदार्थों के क्षणिकत्व को अनुमान भी ग्रहण नहीं कर सकता है, क्योंकि प्रत्यक्ष की उसमें प्रवृत्ति नहीं होने से अनुमान की प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी, अर्थात् प्रत्यक्ष द्वारा जाने हुए अविनाभाव का आश्रय लेकर पक्षधर्मता के ज्ञान के बल से अनुमान प्रमाण उत्पन्न होता है, जो प्रत्यक्ष का विषय नहीं है ऐसे स्वर्ग प्रादि के विषय के समान विषय में तो अनुमान की अप्रवृत्ति हो रहती है।
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