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क्षणभंगवादः
कथमसो तद्बाधक : ? द्वितीयपक्षेप्यनुवृत्ताकारप्रतिभासमन्तरेण स्थासको शादिप्रतिभासस्य तद्वयतिरिक्तस्यासंवेदनात्तबाधकत्वायोगात् । अनुवृत्ताकाराप्रतिपत्तौ च विशेषप्रतिभासस्यैवासम्भवात्कथं तबाधकता?
किञ्च, विपरीतार्थव्यवस्थापकं प्रमाणं बाधकमुच्यते । प्रतिक्षणविनाशिपदार्थव्यवस्थापकत्वेन च प्रत्यक्षम्, अनुमानं वा प्रवत्त'तान्यस्य प्रमाणत्वेन सौगतैरनभ्युपगमात् ? तत्र न तावत्प्रत्यक्षं तव्यवस्थापकम् ; तत्र तथार्थानामप्रतिभासनात् । न हि प्रतिक्षणं त्रुटयद्रूपतां बिभ्राणास्त त्रार्थाः प्रतिभासन्ते, स्थिरस्थूलसाधारणरूपतयैव तत्र तेषां प्रतिभासनात् । न चान्यादृग्भूतः प्रतिभासोऽन्यादृग्भूतार्थव्यवस्थापकोऽतिप्रसङ्गात् ।
अनुवृत्त प्रत्यय मिथ्या है तब अनुवृत्त प्रत्ययाकार हुआ जो विशेष प्रतिभास है वह भी तो मिथ्या कहलायेगा फिर वह कैसे बाधक बनेगा ? द्वितीय पक्ष-अनुवृत्त प्रतिभास रहित जो विशेष प्रतिभास है वह अनुवृत्तप्रत्यय का बाधक है ऐसा कहे तो अनुवृत्ताकार का प्रतिभास हुए बिना स्थास कोश यादि का प्रतिभास उनसे व्यतिरिक्त अनुभव में नहीं पाता है अतः बाधक नहीं हो सकता । अनुवृत्ताकारको प्रतिपत्ति नहीं होने पर भी विशेष प्रतिभास उसका बाधक होता है ऐसा द्वितीय विकल्प कहो तो ऐसा विशेष प्रतिभास होना ही असंभव है, अतः उसमें बाधकपना किसप्रकार सिद्ध होगा ? नहीं हो सकता।
दूसरी बात यह है कि बाधक तो उसे कहते हैं जो विपरीत अर्थ का व्यवस्थापक प्रमाण होता है । अब बताइये कि हमारे नित्य वस्तु से विपरीत अर्थ जो क्षणिकत्व है उसको कौनसा प्रमाण सिद्ध करता है अर्थात् प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण विनाश शील है ऐसी व्यवस्था प्रत्यक्ष प्रमाण करता है अथवा अनुमान प्रमाण करता है ? अन्य तीसरा प्रमाण तो बौद्धों ने माना नहीं । प्रत्यक्ष प्रमाण पदार्थ के प्रतिक्षण विनाश शील स्वभाव की व्यवस्था कर नहीं सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष में उस प्रकार के पदार्थ प्रतिभाषित ही नहीं होते हैं । प्रत्यक्ष प्रमाण में प्रतिक्षण विनाश रूपता को धारण करने वाले पदार्थ प्रतिभासित नहीं होते हैं, उसमें तो स्थिर स्थूल साधारण स्वरूप को धारण करने वाले पदार्थ ही प्रतीत हो रहे हैं, अन्य किसी रूप तो प्रतिभासित हो और अन्य ही किसी रूप बतावे सो बनता नहीं, यदि ऐसा कहेंगे तो अति प्रसंग होगा फिर तो घट ज्ञान पटका व्यवस्थापक बन सकता है ।
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