Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे किञ्च, अभावस्यार्थान्तरत्वानभ्युपगमे कि घट एव प्रध्वंसोऽभिधीयते, कपालानि, तदपरं पदार्थान्तरं वा ? प्रथमपक्षे घटस्वरूपेऽपरं नामान्तरं कृतम् । तत्स्वरूपस्य त्वविचलितत्वान्नित्यत्वानुषङ्गः । अथकक्षणस्थायि घटस्वरूपं प्रध्वंसः, न; एकक्षणस्थायितया तद्रूपस्याद्याप्यप्रसिद्धेः । द्वितीयपक्षेपि प्राक्कपालोत्पत्त: घटम्यावस्थिते : कालान्तरावस्थायितैवास्य, न क्षणिकता।
किञ्च, कपालकाले ‘सः, न' इति शब्दयोः किं भिन्नार्थत्वम्, अभिन्नार्थत्वं वा ? भिन्नार्थत्वे कथं न नशब्दवाच्यः पदार्थान्तरमभावः ? अभिन्नार्थत्वे तु प्रागपि नप्रयोगप्रसक्तिः । न चानुपलम्भे सति नप्रयोग इत्यभिधातव्यम् ; व्यवधानाद्यभावे स्वरूपादप्रच्युतार्थस्यानुपलम्भानुपपत्त: । स्वरूपात्प्रच्युतो वा कथं न कपालकाले मुद्गरादिहेतुकं भावान्तरं प्रच्युतिर्भवेत् ?
आप बौद्ध से हम जैन का प्रश्न है कि घट आदि पदार्थ से उसका अभाव [विनाश ] अर्थान्तरभूत नहीं है ऐसा आप कहते हैं-सो विनाश किसे कहा जाय, घट को नाश कहेंगे कि कपाल-ठीकरों को नाश कहेंगे, अथवा अन्य ही पट आदि को नाश कहेंगे ? घट को ही नाश कहते हैं तो वह नाश घट का स्वरूप हुआ, उसीका प्रध्वंस या नाश यह नाम धरा, और जब प्रध्वंस घट का स्वरूप बना तो स्वरूप प्रचलित होता है अतः नित्य रहने का प्रसंग आयेगा।
शंका---एक क्षण स्थायी घट का जो स्वरूप है उसे प्रध्वंस कहना चाहिये ?
समाधान – ऐसा नहीं कहना, घट का एक क्षण स्थायीपना अभी तक सिद्ध ही नहीं हरा है । कपालों को प्रध्वंस कहते हैं ऐसा दूसरा पक्ष रखे तो कपालों की उत्पत्ति के पहले घट की अवस्थिति रह जाने से कालांतर तक घट का सदभाव सिद्ध हा, इससे तो घट की क्षणिकता सिद्ध न होकर अक्षणिकता ही सिद्ध होती है।
किंच, कपाल के काल में "वह" "नहीं" ऐसे दो शब्द हैं सो इन दोनों का भिन्न भिन्न अर्थ है अथवा अभिन्न-एक ही अर्थ है ? भिन्न भिन्न अर्थ है तो नत्र शब्द का वाच्यभूत एक पृथक् पदार्थ रूप अभाव कैसे नहीं सिद्ध हुना ? हा ही। 'वह' और 'नहीं', इन शब्दों का अभिन्न-एक अर्थ है ऐसा माने तो घटाभाव के पहले भी 'न' 'नहीं' शब्द का प्रयोग होने का प्रसंग आता है । अर्थात् घट मौजूद रहते हुए भी “घट नहीं है" ऐसा कहना होगा।
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