Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
द्वितीयपक्षेपि किं स्वगतकतिपय विशेषाधायकत्वम्, सकलविशेषाधायकत्वं वा? तत्राद्यविकल्पे सर्वज्ञज्ञाने स्वाकारार्पकस्यास्मदादिज्ञानस्य तत्प्रत्युपादान भावः, तथा च सन्तानसङ्करः । रूपस्य वा रूपज्ञान प्रत्युपादान भावोनुषज्येत स्वगतकतिपयविशेषाधायकत्वाविशेषात् । रूपोपादानत्वे
करता है ऐसा माने तो परलोक का अभाव होता है, क्योंकि घट संतान, पट संतान आदि के समान प्रात्मा भी एक संतान है और उसका यदि सर्वथा नाश होता है तो परलोक में कौन गमन करेगा ? अतः उपादान कारण का प्रथम लक्षण गलत है। ऐसे ही अनेक कारण कलाप से उत्पद्यमान कार्य में विशेषाधायकत्व, समनंतर प्रत्यय मात्र, नियम से अन्वय व्यतिरेक विधानत्व रूप उपादान कारण का लक्षण सिद्ध नहीं होता है, इन सब लक्षणों का आगे कमशः विवेचन हो रहा है, यहां यह ध्यान रखना चाहिये कि उपादान कारण के ये जो चार तरह से लक्षण बतलाये हैं वे सब परमत की जैसी मान्यता है तदनुसार पूछे हैं, क्योंकि उन्हीं द्वारा मान्य लक्षणों को बाधित करना है, इसी प्रकार अन्यत्र भी जहां कहीं लक्षण आदि के विषय में विकल्प उठाते हैं तो उसी-उसी मत की अपेक्षा लेकर कह रहे हैं ऐसा समझना चाहिये । अस्तु ।
द्वितीय पक्ष-अनेक कारण कलाप से उत्पद्यमान कार्य में विशेषाधायक होना उपादान कारण है ऐसा कहो तो विशेषाधायकत्व कौनसा है, स्वगत कतिपय विशेषाधायकत्व-अपने में [ उपादान में ] होने वाले कुछ विशेषों को कार्य में डालना, या सकल विशेषाधायकत्व-अपनी सारी विशेषता को कार्य में डालना ? पहली बात स्वीकार करे तो सर्वज्ञ के ज्ञान में जब हमारा छद्मस्थों का ज्ञान अपना आकार अर्पित करता है तब उस सर्वज्ञ ज्ञान के प्रति उपादान भाव बनता ही है सो यह संतान संकर हुआ ? [ इसी तरह हमारे ज्ञान सर्वज्ञ को विषय करेंगे तो संकर होगा ] क्योंकि अपने में होने वाले कुछ कुछ विशेषों को-चेतनत्वादि को कार्यभूत सर्वज्ञ ज्ञान में डाल दिया है [ ज्ञान जिसको जानता है उसीसे उत्पन्न होता है और उसीके आकार वाला होता है ऐसी बौद्ध की मान्यता है अत: सर्वज्ञ का ज्ञान जब हम जैसे को जानेगा तो हमारे से या हमारे ज्ञान से उत्पन्न होगा, सो हम जो उनके ज्ञान के प्रति उपादान बने हैं इसलिये हमारी संतान का उनके संतान के साथ संकर होने का प्रसंग पा रहा है ] इसीप्रकार नील, पीत अादि वर्ण जब रूप ज्ञान के प्रति उपादान होते हैं तब उनका संतान संकर होवेगा, क्योंकि स्वगत कतिपय विशेषाधायकत्व
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