Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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क्षणभंगवादः
अथ घटकपालव्यतिरिक्त भावान्तरं घटप्रध्वंसः; नन्वत्रापि तेन सह घटस्य युगपदवस्थानाविरोधात् कथं तत्तत्प्रध्वंसः ? अन्यथोत्पत्तिकालेपि तत्प्रध्वंसप्रसङ्गाद्घटस्योत्पत्तिरेव न स्यात् ।
अन्यानपेक्षतया चाग्नेरुष्णत्ववत्स्वभावतोऽभावस्य भावे स्थितेरपि स्वभावतो भावः किन्न स्यात् ? शक्यते हि तत्राप्येवं वक्तु कालान्तरस्थायी स्वहेतोरेवोत्पन्नो भावो न तद्भावे भावान्तरमपेक्षते अग्निरिवोष्णत्वे । भिन्नाभिन्नविकल्पस्य चाभाववत् स्थितावपि समानत्वात् तत्राप्यन्यानपेक्षया
शंका-जब घट उपलब्ध नहीं होगा तब 'न' नहीं शब्द का प्रयोग होगा, पहले से नहीं ?
समाधान-ऐसा नहीं कह सकते, जिसमें किसी प्रकार देश आदि का व्यवधान नहीं है, जो स्वरूप से च्युत भी नहीं हुआ है ऐसा यदि पदार्थ है तो वह अनुपलब्ध क्यों रहेगा ? वह तो उपलब्ध हो ही जायगा, मतलब दूर देशादि में भी घट नहीं है निकट में है, स्वरूप भी उसका नष्ट नहीं हुआ है तो वह दिखायी देना ही चाहिये । यदि घट, कपाल काल में स्वरूप से च्युत होता है ऐसा स्वीकार करते हैं, तब तो कपाल काल में लाठी आदि हेतु से घटादि का भावांतर रूप से हो जाना प्रच्युति या विनाश है यह सिद्ध हुआ ।
तीसरा पक्ष-घट तथा कपाल से पृथग्भूत पदार्थ को घट का प्रध्वंस कहते हैं ऐसा माने तो उसमें पुन: प्रश्न होता है कि पृथग्भूत पदार्थ स्वरूप उस घट के प्रध्वंस के साथ घट का युगपत् रहना अविरुद्ध होने से वह घट का प्रध्वंस कैसे करेगा ? यदि कर सकता है तो घट क्षण की उत्पत्ति काल में भी कर सकेगा। फिर तो घट की उत्पत्ति ही नहीं हो सकेगी।
यदि अग्नि का उष्णत्व अन्य की अपेक्षा के बिना स्वभावतः है वैसे अभाव को स्वभावतः माना जाता है तो स्थिति-ध्रौव्य भी स्वभावतः पदार्थ में क्यों नहीं रह सकता ? स्थिति के विषय में कह सकते हैं कि स्वहेतु से ही पदार्थ कालांतर तक ठहरने वाला उत्पन्न होता है [ अर्थात् चिरकाल तक टिकने वाला पदार्थ उत्पन्न होता है न कि क्षणिक रूप उत्पन्न होता है ] इसमें उसको अन्य हेतु की अपेक्षा नहीं करनी पड़ती, जैसे अग्नि उष्ण रूप से स्वभावतः ही उत्पन्न होती है। जिस
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