Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रत्यक्षमुदेतीति सत्यपीताकारेपि न तत्प्रमाणम् । भ्रान्तादभ्रान्तस्य विशेषोन्यत्रापि समानः। प्रसाधितं च प्रत्यभिज्ञानस्याभ्रान्तत्वं प्रागित्यलमतिप्रसङ्गेन ।
अथ विपक्षे बाधकप्रमाणबलात्सत्त्वक्षणिकत्वयोरविनाभावोवगम्यते । ननु तत्र सत्त्वस्य बाधकं प्रत्यक्षम्, अनुमानं वा स्यात् ? न तावत्प्रत्यक्षम् ; तत्र क्षणिकत्वस्याप्रतिभासनात् । न चाप्रतिभासमानक्षणक्षयस्वरूपं प्रत्यक्षं विपक्षाव्यावर्त्य सत्त्वं क्षणिकत्वनियतमादर्शयितु समर्थम् । अथानुमानेन तत्ततो व्यावर्त्य क्षणिकनियततया साध्येत; ननु तदनुमानेप्यविनाभावस्यानुमानबलात्प्रसिद्धि :, तथा चानवस्था । न च तद्बाधकमनुमानमस्ति ।
बौद्ध-भ्रान्त ज्ञान से अभ्रान्त ज्ञान विशेष ही हुआ करता है अतः भ्रान्त ज्ञान बाधित होने पर भी अभ्रान्त ज्ञान को बाधित नहीं मानते हैं।
जैन-यह बात तो एकत्व ज्ञान के विषय में भी है वह भी कहीं नख केशादि विषय में भ्रान्त होते हुए भी घट-देवदत्त आदि विषयों में अभ्रान्त ही है, प्रत्यभिज्ञान अभ्रान्त-सत्य होता है इस बात की सिद्धि पहले [ तीसरे परिच्छेद में ] ही कर आये हैं अतः यहां अधिक नहीं कहते हैं ।
शंका-विपक्ष में बाधक प्रमाण को देखकर क्षणिकत्व और सत्व में अविनाभाव सिद्ध किया जाता है, अर्थात् पहले सत्व को क्षणिकत्व के साथ देखा था अतः यह सत्व क्षणिकत्व का विपक्ष अक्षणिक-नित्य में नहीं रह सकता। इस प्रकार दोनों का अविनाभाव सिद्ध करते हैं ?
समाधान-अक्षणिक में सत्व नहीं रहता "इस तरह कहने वाला बाधक प्रमाण कौनसा होगा, प्रत्यक्ष या अनुमान ? प्रत्यक्ष तो हो नहीं सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष में तो क्षणिक रूप वस्तु प्रतीत ही नहीं होती, जिसमें पदार्थ का क्षणक्षयीपना प्रतिभासित ही नहीं होता है वह प्रत्यक्ष सत्व को विपक्ष भूत अक्षणिकत्व से हटाकर क्षणिकत्व में ही नियत करने को समर्थ नहीं हो सकता है । अनुमान प्रमाण बाधक है वह सत्व को विपक्षभूत अक्षणिकत्व से हटाकर क्षणिकत्व में नियत कर देता है, ऐसा कहो तो वह "सर्वं क्षणिक सत्वात्" जो अनुमान है उसके साध्य साधन के अविनाभाव को भी सिद्ध करना होगा अत: दूसरा अनुमान चाहिये, पुनः उसके
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