Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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क्षणभंगवादः
१०१
प्रत्यक्षेण शुक्लतानुमानस्य बाधितत्वान्न तत्र शुक्लतासिद्धिः, तहि घटादौ क्षणिकतानुमानस्य 'स एवायम्' इत्येकत्वप्रतिभासेन बाधितत्वात्प्रतिक्षणविनाशितासिद्धिर्न स्यात् ।
अर्थकत्व प्रत्यभिज्ञा भिन्न ष्वपि लुनपुनर्जातनखके शादिष्व भेदमुल्लिखन्ती प्रतीयत इत्येकत्वे नाऽसौ प्रमाणम् ; नन्वेवं कामलोपहताक्षाणां धवलिमामाबिभ्राणेष्वपि पदार्थेषु पीताकारनिर्भासि
अनुमान लगाना पड़ेगा ? क्योंकि शंख में शुक्लता के साथ सत्व को देखा है अतः जहां सत्व है वहां शुक्लता है ऐसा भी अनुमान करने लग जायेंगे ।
शंका-सुवर्ण में शुक्लता को सिद्ध करने वाला अनुमान साक्षात् सुवर्ण के [ पीले ] आकार से प्रतिभासित हुए प्रत्यक्ष से बाधित है अतः उस अनुमान से सुवर्ण में शुक्लपना सिद्ध नहीं हो सकता है ?
समाधान- तो फिर यही बात घट आदि पदार्थ के विषय में माननी होगी घट आदि को क्षणिक रूप सिद्ध करने वाला अनुमान "यह वही घट है जिसे मैंने पहले देखा था" इत्यादि प्रतिभास द्वारा बाधित होता हुआ देखा हो जाता है, अत: उस अनुमान द्वारा उन पदार्थों का प्रतिक्षण विनाशपना सिद्ध नहीं हो सकता है।
बौद्ध -यह वही है इत्यादि एकत्व रूप जो प्रत्यभिज्ञान होता है वह काट कर पुनः उत्पन्न हुए नख केश आदि भिन्न भिन्न पदार्थों में भी "यह वही नख है" इत्यादि एकत्व का प्रतिभास कराता है अतः एकत्व के विषय में वह प्रतीति प्रमाणभूत नहीं है।
जैन- इस तरह एक जगह एकत्व की प्रतीति प्रमाण भूत नहीं होने से सब जगह ही उसको अप्रमाण माना जायगा तो बड़ा भारी दोष होगा देखिये ! किसी पीलिया नेत्र रोगी को सफेद रंग वाले पदार्थों में पीत आकार को [ पीत रंग को बतलाने वाला ] प्रतीति कराने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान होता है वह बाधित होता है अतः अप्रमाण है, इसलिये वास्तविक पीत वस्तु-सुवर्ण आदि में पीताकार प्रतीति कराने वाला ज्ञान भी अप्रमाणभूत कहलायेगा । क्योंकि वह एक जगह बाधित हो चुका है । जैसे आपने एकत्व का ज्ञान नख केशादि में बाधित होता देख सब जगह अप्रमाणभूत माना है।
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