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क्षणभंगवादः
नापि सत्त्वात् ; प्रतिबन्धासिद्ध :। न च विद्युदादौ सत्त्वक्षणिकत्वयोः प्रत्यक्षत एव प्रतिबन्धसिद्ध घटादौ सत्त्वमुपलभ्यमानं क्षणिकत्व गमयति इत्यभिधातव्यम् ; तत्राप्यनयोः प्रतिबन्धासिद्ध: । विद्यदादौ हि मध्ये स्थितिदर्शनं पूर्वोत्तरपरिणामी प्रसाधयति । न हि विद्युदादेरनुपादानोत्पत्तियुक्तिमती; प्रथमचैतन्यस्याप्यनुपादानोत्पत्तिप्रसङ्गत : परलोकाभावानुषजात्, विद्युदादिवत्तत्रापि प्रागुपादानाऽदर्शनात् । न चानुमीयमानमत्रोपादानम् ; विद्युदादावपि तथात्वानुषङ्गात् ।
पदार्थों की क्षणिकता "सत्वात्" हेतु से भी सिद्ध नहीं होती है, क्योंकि उसका क्षणिकत्व के साथ अविनाभाव नहीं है ।
बौद्ध-विद्युत् प्रादि पदार्थों में सत्त्वपना और क्षणिकपने का अविनाभाव प्रत्यक्ष से ही सिद्ध है, अतः वहां के अविनाभाव को देखकर घट आदि में सत्व की उपलब्धि से क्षणिकत्व को भी सिद्ध करते हैं । अर्थात् बिजली आदि में सत्व और क्षणिकत्व साथ था अत: घट आदि में भी क्षणिकत्व होना चाहिये क्योंकि सत्व साक्षात् दिखायी दे रहा है तो उसका अविनाभावी क्षणिकत्व भी अवश्य होना चाहिये ।
जैन-यह कथन गलत है, बिजली आदि पदार्थ में भी सत्व और क्षणिकत्व का अविनाभाव प्रसिद्ध ही है, क्योंकि बिजली आदि की बीच में जो स्थिति देखी जाती है वह पूर्व और उत्तर परिणामों को सिद्ध करतो है अर्थात् विद्युत प्रादि पदार्थ पहले दिखायी देते हैं फिर नष्ट होते हैं यह सब बीच में कुछ समय स्थिति रहने पर ही संभव हो सकता है जब बिजली आदि पदार्थ कुछ काल तक रहते हैं तो "सभी पदार्थ क्षणिक हैं क्योंकि सत्व रूप हैं, जैसे बिजली आदि पदार्थ सत्व रूप होकर क्षणिक होते हैं" इस तरह के अनुमान में वे उदाहरण भूत कैसे हो सकते हैं ? अर्थात् नहीं हो सकते ।
बिजली आदि पदार्थ बिना उपादान के उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना भी युक्त नहीं है, यदि बिजली आदि की बिना उपादान की उत्पत्ति मानेंगे तो चार्वाक के अभिमत प्रथम चैतन्य की उपादान के बिना उत्पत्ति होना सिद्ध होवेगा फिर परलोक का प्रभाव मानना होगा क्योंकि विद्युत प्रादि का पहले कुछ भी उपादान कारण दिखायी नहीं देता वैसे चैतन्य का भी दिखायी नहीं देता है । तुम कहो कि चैतन्य का उपादान अनुमान से सिद्ध हो जाता है तो विद्युत प्रादि का उपादान भी अनुमान से सिद्ध हो सकता है।
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