Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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क्षणभंगवादः
६३ मुद्गरादिसन्निपाते तज्जनकस्वभावाऽव्याहतौ समर्थक्षणान्तरोत्पादप्रसङ्गः, समर्थक्षणान्तरजननस्वभावस्य भावात्प्राक्तनक्षरणवत् ।
किञ्च, भावोत्पत्त': प्राग्भावस्याभावनिश्चये तदुत्पादककारणापादनं कुर्वन्तः प्रतीयन्ते प्रेक्षापूर्वकारिण : तदुत्पत्तौ च निवृत्तव्यापारा:, विनाशकहेतुव्यापारानन्तरं च शत्रुमित्रध्वंसे सुखदुःखभाजोऽनुभूयन्ते । न चानयोः सद्भाव: सुखदुःखहेतुः, ततस्तद्वयतिरिक्तोऽभावस्त तुरभ्युपगन्तव्यः ।
अशक्त-क्षीण क्षीण शक्ति वाले घट क्षण होते जाते हैं, और अंत में घट संतान का निरन्वय अभाव हो जाता है, इसमें घट का अभाव हुआ तो स्वयं ही किन्तु लाठी
आदि की अपेक्षा मात्र लेकर हुआ अतः व्यवहार में कह देते हैं कि लाठी की चोट . से घट का विनाश हुआ।
जैन-यदि ऐसी बात है तो बताइये कि घट क्षण ही अन्य असमर्थ घट क्षण का उत्पादक है सो उस घट क्षण का लाठी द्वारा कुछ सामर्थ्य का विघात होता है कि नहीं, यदि होता है तो अभाव या नाश निर्हेतुक कहां रहा ? और यदि लाठी से घट क्षण के सामर्थ्य का विघात नहीं होता है ऐसा मानते हैं तो लाठी आदि के चोट लगने पर घट के क्षणांतर को उत्पन्न करने का स्वभाव अबाधित रह जाने से समर्थ अन्य घट क्षण को वह उत्पन्न कर सकता है क्योंकि उसमें समर्थ घट क्षण को उत्पन्न करने का स्वभाव मौजूद ही है, जैसे लाठी के चोट के पहले था । तथा घट आदि पदार्थ के उत्पत्ति के पहले उसका प्रभाव जब निश्चित मालूम रहता है तभी बुद्धिमान लोग उस घट आदि के उत्पादक कारणों को ग्रहण करते हुए देखे जाते हैं, एवं जब उनका घटोत्पत्ति ग्रादि कार्य संपन्न हो जाता है तब वे उस कार्य से निवृत्त भी होते हुए देखे जाते हैं, घट आदि पदार्थ किसी को प्रिय होने से मित्रवत् हैं और किसी को अप्रिय होने से शत्रवत् हैं अतः उस शत्रु मित्र रूप घटादि के विनाशक कारण-लाठी आदि के व्यापार के अनंतर किसी को सुख हर्ष और किसी पुरुष को दुःख होता है । शत्रु और मित्र स्वरूप इन घटों का सद्भाव तो सुख और दुःख का कारण नहीं हो सकता, अतः घटादि पदार्थ के अभाव का हेतु उन पदार्थ के अतिरिक्त कोई है ऐसा मानना चाहिये।
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