________________
क्षणभंगवादः
त्पत्तिवेलायां तत्प्रच्यतेरुत्पत्त्यभावान्न भावहेतुस्तद्धे तुः । तथा चोत्तरोत्तरकालभाविभावपरिणतिमपेक्ष्योत्पद्यमाना तत्प्रच्युतिः कथं भावोदयानन्तरं भाविनी स्यात् ? तृतीयपक्षेपि भावोदयसमसमयभाविन्या तत्प्रच्युत्या सह भावस्यावस्थानाविरोधान्न कदाचिद्भावेन नष्टव्यम् । कथं चासौ मुद्गरादिव्यापारानन्तरमेवोपलभ्यमाना तदभावे चानुपलभ्यमाना तज्जन्या न स्यात् ? अन्यत्रापि हेतुफलभावस्यान्वयव्यतिरेकानुविधानलक्षणत्वात् ।
न च मुद्गरादीनां कपालसन्तत्युत्पादे एव व्यापार इत्यभिधातव्यम् ; घटादेः स्वरूपेणाविकृतस्यावस्थाने पूर्ववदुपलब्ध्यादिप्रसङ्गात् । न चास्य तदा स्वयमेवाभावान्नोपलब्ध्यादिप्रसङ्गः; तदभावस्यापि तदैवोपलभ्यमानतयाऽन्यदा चानुपलभ्य मानतया कपालादिवत्तत्कार्यतानुषङ्गात् ।
के उत्तर काल में भाव हेतु घटादि के नाश को उत्पन्न करते हैं, ऐसा कहो तो घट आदि के उत्पत्ति के समय में उसके नाश की उत्पत्ति नहीं होने के कारण भाव हेतु ही [ उत्पत्ति का हेतु ही ] नाश का हेतु है ऐसा कहना गलत ठहरता है। जब भाव हेतु [ मिट्टी चक्रादि ] नाश के हेतु रूप सिद्ध नहीं होते हैं तब जो नाश उत्तरोत्तर कालभावी पदार्थ की परिणति की अपेक्षा लेकर उत्पन्न होता है उस नाश को पदार्थ की उत्पत्ति के अनंतर ही होता है ऐसा किस प्रकार कह सकते हैं ? तीसरा पक्ष-भाव हेतु पदार्थ की उत्पत्ति के समान काल में प्रच्युति को पैदा करते हैं ऐसा कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि इस तरह तो पदार्थ की उत्पत्ति के समान काल में होने वाली प्रच्युति के साथ पदार्थ का अवस्थान होने में भी विरोध नहीं रहने से पदार्थ को कभी भी नष्ट नहीं होना चाहिये । आप घटादि पदार्थों का नाश लाठी आदि से नहीं होता है ऐसा कहते हैं किन्तु जब लाठी की चोट लगते ही घटादिक नष्ट होते हैं और नहीं लगने पर नष्ट नहीं होते हैं, तो किसप्रकार लाठी आदि द्वारा घटादि का नाश होना नहीं मानेंगे । क्योंकि घटादि का नाश होकर कपालादिको उत्पत्ति में भी कारण कार्य का अन्वय व्यतिरेक भाव देखा जाता है, अर्थात् लाठी की चोट लगे तो घट फूट कर कपाल बना [ अन्वय ] और लाठी आदि की चोट का निमित्त नहीं मिला तो घट फटकर कपाल की उत्पत्ति नहीं हुई [ व्यतिरेक ] अतः घटादि पदार्थ के नाश के कारण लाठी आदिक है ऐसा सिद्ध होता है ।
बौद्ध - घट आदि पदार्थ के नाश का कारण लाठी आदि नहीं है, लाठी आदिक तो मात्र कपाल [ ठोकरे ] की उत्पत्ति में कारण हुआ करते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org