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प्रमेयकमलमार्तण्डे
किञ्च, अत्र स्वभावहेतोः, कार्यहेतोर्वा व्यापार: स्यात् ? न तावत्स्वभावहेतोः; क्षणिकस्वभावतया कस्यचिदर्थस्वभावस्यानिश्चयात्, क्षणिकत्वस्याध्यक्षागोचरत्वात् । अध्यक्षगोचरे एव ह्यर्थे स्वभावहेतोर्व्यवहृतिप्रवर्तनफलत्वम्, यथा विशददर्शनावभासिनि तरौ वृक्षत्वव्यवहारप्रवर्तनफलत्वं शिशपाया:।
प्रथोच्यते-'यो यद्भावं प्रत्यन्यानपेक्षः स तत्स्वभावनियत : यथाऽन्त्या कारणसामग्री स्वकार्योत्पादने, विनाशं प्रत्यन्यानपेक्षाश्च भावाः' इति ; तदप्युक्तिमात्रम् ; हेतोरसिद्ध: । न खलु मुद्गराधनपेक्षा घटादयो भावा: प्रमाणतो विनाशमनुभवन्तोनुभूयन्ते प्रतीतिविरोधात् ।
यदि जबरदस्ती मान भी लेवे कि प्रत्यक्ष के अविषयभूत क्षणिकत्व में अनुमान की प्रवृत्ति होती है तो उसमें कौन से हेतु का व्यापार होगा स्वभाव हेतु का या कार्य हेतु का ? स्वभाव हेतु का तो हो नहीं सकता, क्योंकि किसी भी पदार्थ का स्वभाव क्षणिकत्व स्वभाव रूप से निश्चित नहीं है । क्षणिकत्व का अनिश्चय भी इसीलिये है कि वह प्रत्यक्ष के गोचर नहीं है । तथा स्वभाव हेतु के व्यवहार प्रवृत्ति की सफलता प्रत्यक्ष के विषयभूत पदार्थ में ही हुआ करती है, जिस प्रकार कि विशद प्रत्यक्ष से अवभासित हुए वृक्ष में शिंशपानामा स्वभाव हेतु से वृक्षत्व व्यवहार की प्रवृत्तिरूप फल है, अभिप्राय यह है कि स्वभाव हेतु वाला अनुमान प्रत्यक्ष गोचर पदार्थ में प्रवृत्त होता है न कि प्रत्यक्ष के विषय में, अतः स्वभाव हेतु वाला अनुमान क्षणिकत्व का ग्राहक नहीं बन सकता ।
बौद्ध-पदार्थ विनाश स्वभाव से नियत है, क्योंकि विनाश के लिये अन्य की अपेक्षा नहीं रखते हैं, जो जिस भाव के प्रति अन्य से अनपेक्ष है वह विनाश स्वभाव से नियत रहता है, जैसे अंतिम कारण सामग्री अपने कार्य को उत्पन्न करने में अन्य की अपेक्षा नहीं करती है, प्रत्येक पदार्थ विनाश के प्रति अन्य की अपेक्षा रखते हो नहीं, अतः विनाश स्वभाव नियत है, इस अनुमान द्वारा पदार्थों का क्षणिकत्व सिद्ध होता है ?
जैन-यह कथन अयुक्त है, विनाश प्रति अन्य अनपेक्षत्वनामा अनुमान का हेतु असिद्ध है, आपका जो कहना है कि पदार्थ विनाश होने के लिये अन्य अनपेक्ष है किन्तु यह बात प्रसिद्ध है, घट आदि पदार्थ लाठी आदि की अपेक्षा किये बिना विनाश को प्राप्त होते हैं ऐसा प्रमाण से अनुभव में नहीं आता है, यह तो प्रतीति विरुद्ध बात
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