Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे न च तत्र तथा तेषां प्रतिभासेपि सदृशापरापरोत्पत्तिविप्रलम्भाद्यथानुभवं व्यवसायानुपपत्तेः स्थिरस्थूलादिरूपतया व्यवसायः; इत्यभिधातव्यम् ; अनुपहतेन्द्रियस्यान्यादृग्भूतार्थनिश्चयोत्पत्तिकल्पनायां प्रतिनियतार्थव्यवस्थित्यभावानुषङ्गात् । नीलानुभवेपि पीतादिनिश्चयोत्पत्तिकल्पना. प्रसङ्गात् । तथा च "यत्रैवजनये देनां तत्रैवास्य प्रमाणता" [ ] इत्यस्य विरोधः । ततो
भावार्थ-पहले पदार्थ का किसी अन्य रूप प्रतिभास हुआ था और पुन: किसी अन्य रूप हुआ तब उस दूसरे प्रतिभास के अनुसार जब पदार्थ साक्षात् अर्थक्रियाकारी दिखायो देवे तब वह दूसरा प्रतिभास या ज्ञान पहले प्रतिभास का बाधक कहलाता है । जैसे "यह जल है" ऐसा मरीचिका में पहले प्रतिभास हुआ था वह दूसरे वास्तविक प्रतिभास से बाधित होता है कि यह जल नहीं किन्तु मरीचिका है, क्योंकि इसमें अर्थ क्रियादि दिखायी नहीं देती इत्यादि । यहां पर बौद्ध ने कहा था कि अनुवृत्ताकार प्रतिभास बाधित होता है अतः वह असत्य है, किन्तु यह बात सर्वथा गलत है, अनुवृत्ताकार प्रतिभास को बाधित करने वाला कोई वास्तविक प्रमाण ही नहीं है, प्रत्यक्षादि प्रमाण तो प्रत्येक पदार्थ को स्थिर, साधारण – सदृश परिणामादि से युक्त ही प्रतिभासित कर रहे हैं । अतः अनुवृत्ताकार प्रत्यय बाधित होता है ऐसा बौद्ध का कहना ही बाधित होता है न कि अनुवृत्त प्रत्यय बाधित होता है।
बौद्ध · प्रत्यक्षादि प्रमाण में जो पदार्थों की स्थिर-सदृश आदि रूप प्रतीति होती है वह अन्य अन्य सदृश परिणामों के उत्पन्न होने से होती है, उस अपर अपर सदृश परिणाम के कारण ही पदार्थ का वास्तविक प्रतिभास होता नहीं और स्थिरस्थल-सदृशादि रूप प्रतिभास होने लग जाता है, अर्थात् पदार्थ का क्षणिक रूप निश्चय न होकर नित्य रूप निश्चय होने लगता है ?
जैन-इस तरह नहीं कहना ! देखिये-जिसकी इन्द्रिय उपहत [ सदोष ] नहीं है ऐसे मनुष्य के भी अन्य तरह-[ वस्तु स्वरूप से विपरीत ] का अर्थ निश्चय उत्पन्न होना स्वीकार करेंगे तो किसी भी पदार्थ की प्रतिनियत व्यवस्था बन नहीं सकेंगी। फिर तो कोई पदार्थ नील स्वरूप अनुभव में आने पर भी उसमें पीत आदि रूप निश्चय उत्पन्न होने लगेगा ? इस तरह तो “यत्रैव जनयेदेनां तत्रैवास्य प्रमाणता" निर्विकल्प प्रत्यक्ष जिस विषय में सविकल्प बुद्धि को उत्पन्न करता है मात्र उसी विषय
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